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    Ganga Dussehra 2025: विष्णुपदी से लेकर गंगा सागर तक, जानिए मां गंगा को मिले हैं कितने नाम

    Updated: Thu, 29 May 2025 10:00 AM (IST)

    मां गंगा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को धरती पर अवतरित हुईं। धरती पर आने से पहले उन्हें विष्णुपदी और ब्रह्मपुत्री जैसे नामों से जाना जाता था। स्वर्ग में उन्हें देवनदी और भगवान शिव की जटाओं में जटाशंकर कहा गया। हिमालय में हिमानी और भागीरथ द्वारा धरती पर लाने के कारण भागीरथी कहलाईं। बंगाल में मेघना और सागर में मिलने पर गंगासागर के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

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    Ganga Dussehra 2025: मां गंगा के इन पावन नामों की कहानी भी बड़ी रोचक है।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मां गंगा धरती पर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को धरती पर अवतरित हुई थीं। इस दिन को गंगा दशहरा (Ganga Dussehra 2025) के नाम से जाना जाता है और यह त्योहार इस साल 5 जून को मनाया जाएगा। धरती पर आने से पहले मां गंगा को कई नामों से पुकारा और जाना जाता था।

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    धरती पर आने के बाद उन्हें अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। मां गंगा के इन पावन नामों की कहानी भी बड़ी रोचक है। आइए जानते हैं कैसे-कैसे गंगा को नए नाम मिलते रहे और उनके पीछे की क्या है कहानी। 

    गंगा को मिला है त्रदेवों का सानिध्य 

    धरती पर आने से पहले गंगा को सृष्टि के तीनों प्रमुख देवताओं यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का सानिध्य मिला। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के अंगूठे से हुआ है। इसलिए उन्हें विष्णुपदी का नाम दिया गया है। 

    वहां से निकलने के बाद भगवान ब्रह्मा ने उन्हें अपने कमंडल में समाहित कर लिया, जिसकी वजह से उन्हें ब्रह्मपुत्री नाम मिला। गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के साथ गलत करने के कारण स्वर्ग की गरिमा धूमिल हो गई थी। तब उसकी पवित्रता को फिर से स्थापित करने के लिए गंगा को स्वर्ग जाने के लिए ब्रह्मा जी ने कहा। 

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    देवनदी से भागीरथ तक ऐसे पड़ा नाम

    स्वर्ग पहुंचने के बाद गंगा को देवनदी का नाम मिला। भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में स्थान दिया, तो उन्हें जटाशंकर का नाम मिला। वहां से निकलकर जब वह हिमालय में बहती हुईं आगे बढ़ीं, तो उन्हें हिमानी नाम मिला। भागीरथ ही उन्हें धरती पर लाए थे, तो इसलिए गंगा का एक नाम भागीरथी भी पड़ गया। 

    भागीरथी जब भारत की मुख्य नदी बनीं, तो उन्हें मुख्या भी कहा गया। बंगाल में प्रवेश करने के दौरान उनके वेग से ऐसी आवाज आती थी, जैसे मेघ गरज रहे हों। इसलिए बंगाल में उन्हें मेघना के नाम से भी जाता जाता है। यहां से आगे बढ़ते हुए वह जिस जगह पर सागर में गिरती हैं, उस स्थान को गंगासागर का नाम मिला। 

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।