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    Diwali 2025: प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक, मां लक्ष्मी की प्रतिमा के स्वरूप में आए ये खास बदलाव

    Updated: Mon, 20 Oct 2025 10:12 PM (IST)

    देशभर में दीवाली उत्साह से मनाई जा रही है, जिसमें प्रदोष और निशिता काल में देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जा रही है। मान्यता है कि इससे सुख-सौभाग्य बढ़ता है और आर्थिक विषमता दूर होती है। लेख में बताया गया है कि कैसे समय के साथ देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर में परिवर्तन आया है, जैसे गांधार शैली में कमल पर खड़ी गजलक्ष्मी से लेकर तंजौर पेंटिंग और राजा रवि वर्मा की ओलियोग्राफी तक, जहां वे विभिन्न रूपों में कमल पर आसीन या खड़ी दिखाई देती हैं।

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    Maa Lakshmi: मां लक्ष्मी को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में दीवाली का त्योहार उत्साह और उमंग के साथ मनाया जा रहा है। इस शुभ अवसर पर प्रदोष काल में देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जा रही है। प्रदोष काल का समय शाम 5 बजकर 46 मिनट से रात 8 बजकर 18 मिनट तक है। वहीं, वृषभ काल रात 9 बजकर 3 मिनट तक है। इसके साथ ही निशिता काल में भी लक्ष्मी गणेश जी की पूजा की जाती है। इस दौरान देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाएगी।

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    maa laxmi

    धार्मिक मत है कि दीवाली की रात लक्ष्मी गणेश जी की पूजा करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही आर्थिक विषमता दूर होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि दीवाली की रात देवी मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर भ्रमण करती हैं। लेकिन क्या आपको पता है कैसे समय के साथ देवी मां लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर में परिवर्तन हुआ है? आइए जानते हैं-

    मां लक्ष्मी का स्वरूप

    • सनातन शास्त्रों में निहित है देवी मां लक्ष्मी चार भुजाधारी हैं। देवी मां लक्ष्मी कमल पर आसीन हैं। मां के हाथ में कमल है। एक हाथ दान और एक हाथ वर मुद्रा में है। मां लक्ष्मी अपनी कृपा साधक पर बरसती है। मां लक्ष्मी का घर में वास होने से दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है। कार्तिक अमावस्या और शुक्रवार का दिन देवी मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस शुभ अवसर पर देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
    • गांधार शैली के सिक्कों में देवी मां लक्ष्मी कमल पर खड़ी दिखती हैं। उनके दोनों हाथों में गज हैं। आसान शब्दों में कहें तो गांधार शैली में मां लक्ष्मी को कमल के फूल पर खड़ा दिखाया गया है। वहीं, उनके हस्त में गज हैं। इसके लिए उन्हें गजलक्ष्मी भी कहा जाता है।
    • इसी प्रकार, शक नरेश अज़िलिसेस के काल में भी देवी मां लक्ष्मी कमल पर आसीन हैं। इस मुद्रा में भी मां खड़ी हैं। तत्कालीन समय में अयोध्या और उज्जैन में भी चांदी के सिक्कों में मां लक्ष्मी कमल पर खड़ी दिख रही हैं।
    • तंजौर पेंटिंग में देवी मां गज के साथ किसी आसन (गद्दी) पर विराजमान नजर आती हैं। दक्षिण भारत में देवी मां लक्ष्मी गद्दी या ऊंचे आसन पर विराजमान दिखती हैं।
    • पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के अगले दिन देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसमें देवी मां लक्ष्मी उल्लू के साथ नजर आती हैं। क्रोमोलिथोग्राफ, कलकत्ता आर्ट स्टूडियो ने भी देवी मां लक्ष्मी को उल्लू के साथ दिखाया है।
    • इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि 19 वीं शताब्दी में राजा रवि वर्मा के ओलियोग्राफी में देवी मां लक्ष्मी एक नदी के बीच में कमल पर विराजमान (खड़ी) हैं। वहीं, देवी मां लक्ष्मी के चारों ओर जीव जंतु हैं और पीछे पहाड़ है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।