Rahu Kavach: पाना चाहते हैं राहु-केतु दोष से मुक्ति, तो पूजा के समय रोजाना करें ये स्तुति
Rahu Kavach ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में राहु कमजोर होने से व्यक्ति के जीवन में ग्रहण लग जाता है। व्यक्ति को जीवन में ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। व्यक्ति का मन अशांत रहता है। साथ ही निर्णय लेने में भी वह असमर्थ रहता है। कुल मिलाकर कहें तो व्यक्ति के जीवन पर नकारात्मक असर पड़ता है।

नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Rahu Dosh Upay: राहु और केतु दोनों छाया ग्रह हैं। ज्योतिष शास्त्र में दोनों को अशुभ ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। सनातन धर्म शास्त्रों में निहित है कि राहु और केतु की छाया पड़ने के चलते सूर्य और चंद्र ग्रहण लगता है। इसके लिए ग्रहण के समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में राहु कमजोर होने से व्यक्ति के जीवन में ग्रहण लग जाता है। व्यक्ति को जीवन में ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। व्यक्ति का मन अशांत रहता है। साथ ही निर्णय लेने में भी वह असमर्थ रहता है। कुल मिलाकर कहें तो व्यक्ति के जीवन पर नकारात्मक असर पड़ता है। अतः कुंडली में राहु का मजबूत रहना अनिवार्य है। अगर आप भी राहु-केतु दोष से परेशान हैं, तो निजात पाने के लिए रोजाना पूजा के समय राहु-केतु कवच का पाठ करें। राहु-केतु कवच के पाठ से जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। आइए, राहु-केतु कवच का पाठ करें-
राहु ग्रह कवच
अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः ।
अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं । नमः शक्तिः ।
स्वाहा कीलकम् । राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ॥
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ॥
निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः ।
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ॥
नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम ।
जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ॥
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ ।
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ॥
कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ॥
गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ॥
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो ।
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ॥
केतु ग्रह कवच
अस्य श्रीकेतुकवचस्तोत्रमंत्रस्य त्र्यंबक ऋषिः ।
अनुष्टप् छन्दः । केतुर्देवता । कं बीजं । नमः शक्तिः ।
केतुरिति कीलकम् I केतुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥
केतु करालवदनं चित्रवर्णं किरीटिनम् ।
प्रणमामि सदा केतुं ध्वजाकारं ग्रहेश्वरम् ॥
चित्रवर्णः शिरः पातु भालं धूम्रसमद्युतिः ।
पातु नेत्रे पिंगलाक्षः श्रुती मे रक्तलोचनः ॥
घ्राणं पातु सुवर्णाभश्चिबुकं सिंहिकासुतः ।
पातु कंठं च मे केतुः स्कंधौ पातु ग्रहाधिपः ॥
हस्तौ पातु श्रेष्ठः कुक्षिं पातु महाग्रहः ।
सिंहासनः कटिं पातु मध्यं पातु महासुरः ॥
ऊरुं पातु महाशीर्षो जानुनी मेSतिकोपनः ।
पातु पादौ च मे क्रूरः सर्वाङ्गं नरपिंगलः ॥
य इदं कवचं दिव्यं सर्वरोगविनाशनम् ।
सर्वशत्रुविनाशं च धारणाद्विजयि भवेत् ॥
डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'
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