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    Dhanteras 2024: भगवान कुबेर का ऐसा मंदिर जहां कभी नहीं लगता ताला, इस खास समय होती है तंत्र पूजा

    Updated: Sun, 27 Oct 2024 11:31 AM (IST)

    धनतेरस का पर्व (Dhanteras 2024 Shubh Muhurat) बेहद शुभ माना जाता है। यह हर साल भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। धनतेरस दिवाली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन स्वास्थ्य के देवता भगवान धन्वन्तरि की पूजा का विधान है। वहीं आज हम कुबेर जी के ऐसे धाम के बारे में बात करेंगे जो बहुत ही चमत्कारी है।

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    Dhanteras 2024: भगवान कुबेर का दिव्य धाम।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। धनतेरस का त्योहार दीवाली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। इसे धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। यह हर साल दीवाली से पहले मनाया जाता है। इस दिन लोग आयुर्वेद और स्वास्थ्य के देवता भगवान धन्वन्तरि की पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन (Dhanteras 2024) लोग चांदी-सोने की वस्तुएं, बर्तन और झाड़ू आदि चीजें खरीदते हैं, क्योंकि इन्हें खरीदना शुभ माना जाता है।

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    वहीं, आज हम भगवान कुबेर के एक ऐसे मंदिर के बारे में जानेंगे, जहां पर कभी भी ताला नहीं लगाया जाता है, तो आइए जानते हैं।

    शिव परिवार के साथ विराजमान हैं कुबेर जी

    दरअसल, हम मंदसौर (मध्य प्रदेश) के खिलचीपुरा के कुबेर मंदिर (Mandsaur Kuber Mandir) की बात कर रहे हैं। जहां पर कुबेर जी महाराज शिव परिवार के साथ एक ही मंदिर में वास करते हैं। भगवान कुबेर का यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर उनकी शिव परिवार के साथ पूजा होती है।

    धनतेरस के दिन पर यहां सुबह 4 बजे तंत्र पूजा का विधान है। फिर इसके पश्चात भक्त दर्शन के लिए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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    गर्भगृह में नहीं लगता है ताला

    इतिहासकारों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि यहां पर स्थापित मूर्ति 1300 साल पुरानी है और यह खिलजी साम्राज्य से पहले की बताई जाती है। वहीं, इस धाम के पुजारियों का कहना है कि गर्भगृह में आज तक ताला नहीं लगाया गया है। पहले तो दरवाजा तक नहीं था।

    जानकारी के लिए बता दें कि यहां कुबेर मूर्ति चतुर्भुज है। उनके एक हाथ में धन की पोटली, दूसरे में शस्त्र व अन्य में प्याला है। इसके साथ ही कुबेर जी नेवले पर सवार हैं।

    मंदिर का निर्माण युग

    इसके अलावा इतिहासकारों का यह भी मानना है कि इस पवित्र मंदिर का निर्माण मराठाकालीन युग में हुआ था। और भगवान कुबेर की मूर्ति उत्तर गुप्त काल की सातवीं शताब्दी में निर्मित की गई थी। कहते हैं कि इस धाम में एक बार दर्शन और पूजा-अर्चना करने से धन संबंधी सभी मुश्किलें दूर हो जाती हैं।

    इसके साथ ही सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। ऐसे में अगर आप कुबेर देव की कृपा प्राप्त करने की सोच रहे हैं, तो यहां पर दर्शन के लिए जा सकते हैं।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।