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    Pind Daan Vidhi 2020: पितृपक्ष में बेटियां कैसे करें पिंडदान, जानें इसकी पूरी विधि

    By Kartikey TiwariEdited By:
    Updated: Thu, 03 Sep 2020 12:58 PM (IST)

    Pind Daan Vidhi 2020 पिंड का अर्थ है गोल और दान का अर्थ है किसी वस्तु का दूसरों को उपयोग के लिये दिया जाना। पिंडदान अपने पूर्वजों की मुक्ति हेतु किया जाने वाला दान है।

    Pind Daan Vidhi 2020: पितृपक्ष में बेटियां कैसे करें पिंडदान, जानें इसकी पूरी विधि

    Pind Daan Vidhi 2020: श्राद्ध पक्ष की शुरुआत 02 सितंबर से हो रही है। ऐसे में सभी अपने पितरों की मुक्ति और शांति के लिये पिंडदान करवाते है। पिंडदान क्या है और आज के आधुनिक समाज में इसे पुत्रियों द्वारा किया जाना उचित है या अनुचित, इसकी विधि क्या है? आइये जानते है ज्योतिशाचार्या साक्षी शर्मा से।

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    पिंडदान क्या होता है?

    पिंड का अर्थ है गोल और दान का अर्थ है किसी वस्तु का दूसरों को उपयोग के लिये दिया जाना। पिंडदान अपने पूर्वजों की मुक्ति हेतु किया जाने वाला दान है। क्योंकि इसमें आटे से बने गोल पिंड का दान किया जाता है इसलिए इसे पिंड दान कहा जाता है। श्राद्धपक्ष में पिंड दान का काफी महत्व है। दक्षिण की तरफ मुख करके, जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर तैयार किये गए पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना ही पिंडदान कहलाता है।

    पुत्रों के अभाव में पुत्री भी कर सकती है पिंडदान?

    पिता की मृत्यु के बाद बाद आत्मा की तृप्ति और मुक्ति के लिए पुत्र द्वारा पिंडदान और तर्पण करने का विधान है। पिंड तर्पण और श्राद्धकर्म के अभाव में जहां पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता है, वहीं पुत्रों को भी पितृऋण से छुटकारा नहीं मिलता है। यही वजह है कि पिंडदान और तर्पण को प्रत्येक हिन्दू-पुत्र को उसका कर्तव्य माना जाता है। शास्त्रों में पिंडदान के लिये पुत्र और पौत्रों का उल्लेख मिलता है। परंतु हर समाज की तरह ही हिन्दू समाज में भी समय समय पर परिवर्तन होते रहे है। ऐसे में आज के आधुनिक समाज में जहाँ पुत्रियों को कानूनी तौर पर विरासत प्राप्ति का अधिकार मिला है। हिन्दू धर्म भी उन्हें अधिकार देता है कि वह अपने माता पिता का पिंड दान कर सके।

    पिंडदान की विधि:

    1. पिंडदान या श्राद्ध कर्म करते हुए श्वेत वस्त्र ही पहनें।

    2. जौ के आटे या खोये से पिंड का निर्माण कर लें। फिर चावल, कच्चा सूत, फूल, चंदन, मिठाई, फल, अगरबत्ती, तिल, जौ, दही आदि से पिंड का पूजन करें।

    3. पिंड को हाथ में लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए, ‘इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्य: स्वधा’ के बाद पिंड को अंगूठा और तर्जनी उंगली के मध्य से छोड़ें।

    4. इस तरह से कम से कम तीन पीढ़ी के पितरों का पिंडदान करना चाहिए।

    5. पिंडदान करने के बाद पितरों की अराधना करें। इसके बाद पिंड को उठाकर जल में प्रवाहित कर दें।

    6. श्राद्ध हमेशा दोपहर के समय ही किया जाना चाहिए।