Chaitra Navratri Day 6: नवरात्र का छठा दिन मां कात्यायनी के लिए है समर्पित, पढ़िए कथा और मंत्र
नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना करने का विधान है। ऐसे में नवरात्र के छठे दिन देवी के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है जिन्हें महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि देवी कात्यायनी की पूजा-अर्चना से साधक को शत्रुओं पर विजय मिलती है। चलिए जानते हैं मां दुर्गा के इस स्वरूप की कथा।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मां कात्यायनी (Maa Katyayani Puja) के स्वरूप की बात करें, तो उनका स्वरूप अत्यन्त दिव्य है और माता की सवारी सिंह है। इनकी चार भुजाएं हैं जिसमे से देवी के दाहिने ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। वहीं माता का बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प विराजमान है।
मां कात्यायनी की कथा (Maa Katyayani vrat katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महर्षि कात्यायन ने संतान प्राप्ति के लिए देवी भगवती की कठोर तपस्या की। महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर मां भगवती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और उन्हें वरदान दिया कि वह उनके घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। एक बार जब महिषासुर नामक के एक दैत्य का अत्याचार बहुत बढ़ गया, जिससे सभी परेशान हो गए।
तब त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के तेज से देवी उत्पन्न हुईं, जिसने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया, जिस कारण उनका नाम कात्यायनी पड़ा। माता रानी के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद ऋषि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि पर मां कात्यायनी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इसके बाद मां कात्यायनी ने दशमी तिथि पर महिषासुर का वध किया, इसलिए उन्हें महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जाना गया।
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मां कात्यायनी के मंत्र
1. कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
2.ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
3. प्रार्थना मंत्र -
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
4. स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
5. ध्यान मंत्र -
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥
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