Chaitra Navratri 2025: मां कूष्मांडा की इस कथा के पाठ से सभी समस्या होगी दूर, मिलेंगे शुभ परिणाम
चैत्र नवरात्र में चौथे दिन मां कूष्मांडा (Maa Kushmand) की पूजा-अर्चना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां कुष्मांडा की सच्चे मन पूजा करने से साधक को जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है और देवी सभी मुरादें पूरी करती हैं। ऐसा माना जाता है कि पूजा के दौरान मां कूष्मांडा की कथा का पाठ न करने से साधक शुभ फल की प्राप्ति से वंचित रहता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। चैत्र नवरात्र के सभी दिन मां दुर्गा के 09 को रूपों की समर्पित है। इस प्रकार चैत्र नवरात्र का चौथा (Chaitra Navratri 2025 Day 4) दिन मां कूष्मांडा को प्रिय है। इस दिन साधक मां कूष्मांडा (Maa Kushmand Puja Vidhi) की विशेष पूजा और व्रत करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, विधिपूर्वक मां कूष्मांडा की पूजा करने से साधक को सभी तरह की समस्या से छुटकारा मिलता है। साथ ही मां कूष्मांडा की कृपा से रुके हुए काम जल्द पूरे होते हैं।
अगर आप भी मां कूष्मांडा को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो विधिपूर्वक मां कूष्मांडा की पूजा करें और कथा का पाठ करें। इससे साधक को जल्द ही जीवन में शुभ परिणाम मिलेंगे। आइए पढ़ते हैं मां कूष्मांडा की कथा।
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मां कूष्मांडा कथा (Maa Kushmanda Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, जब त्रिदेव ने सृष्टि की रचना करने की कल्पना की, तो उस समय ब्रह्मांड में अंधेरा छाया हुआ था। इस दौरान ब्रह्मांड में सन्नाटा पसरा हुआ था। ऐसे में त्रिदेव ने मां दुर्गा से सहायता ली। मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की। मां कूष्मांडा के मुख मंडल पर मुस्कान से पूरा ब्रह्मांड में उजाला हो गया। इसी वजह से मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा कहा गया। सनातन शास्त्रों के अनुसार, सूर्य लोक में मां कूष्मांडा वास करती हैं। मां कूष्मांडा मुखमंडल पर सूर्य प्रकाशवान है।
(Pic Credit-AI)
मां कूष्मांडा के मंत्र
देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
बीज मंत्र - कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
पूजा मंत्र - ऊं कुष्माण्डायै नम:
ध्यान मंत्र - वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
मां कूष्मांडा देवी स्तोत्र
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कूष्मांडा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्नकुण्डल मण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्।
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥
स्त्रोत
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्।
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
देवी कवच
हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा।
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥
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