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Chaitra Navratri 2024: मां दुर्गा को प्रसन्न करने की कामना होगी पूरी, जान लें कलश स्थापना के नियम

चैत्र नवरात्र का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। नवरात्र साल में चार बार आते हैं। इस दौरान मां दुर्गा की पूजा का विधान है। इस साल चैत्र नवरात्र 9 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त देवी को प्रसन्न करने की कामना करते हैं उन्हें इस पर्व को भाव के साथ मनाना चाहिए।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Published: Fri, 29 Mar 2024 11:12 AM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2024 11:12 AM (IST)
Chaitra Navratri 2024: मां दुर्गा को प्रसन्न करने की कामना होगी पूरी, जान लें कलश स्थापना के नियम
Chaitra Navratri 2024: कलश स्थापना के नियम

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्र जल्द ही शुरू हो रहे है। कलश स्थापना या घटस्थापना नवरात्र के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर की जाती है। यह दिव्य पर्व मां दुर्गा को समर्पित है। इस बार चैत्र नवरात्र 9 अप्रैल, 2024 से शुरू हो रहे हैं। साथ ही इसका समापन 17 अप्रैल, 2024 को होगा। चैत्र नवरात्र के पहले दिन कलश की स्थापना की जाती है, क्योंकि इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है और यह पूजा का महत्वपूर्ण भाग भी होता है।

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घटस्थापना शुभ मुहूर्त में और पूरे विधि-विधान के साथ करना चाहिए। आइए जानते हैं घटस्थापना का सही समय और विधि -

घटस्थापना का शुभ मुहूर्त

  • कलश स्थापना की तिथि - 9 अप्रैल, 2024 दिन मंगलवार
  • कलश स्थापना शुभ मुहूर्त - प्रात: 06 बजकर 11 मिनट से प्रात: 10 बजकर 23 मिनट तक
  • अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 12 बजकर 04 मिनट से 12 बजकर 54 मिनट तक।

कलश स्थापना के नियम

  • सबसे पहले उस विशेष स्थान पर गंगाजल छिड़कें, जहां कलश की स्थापना करनी हो।
  • इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वस्तिक बनाएं और उसके ऊपर कलश स्थापित करें।
  • या फिर मिट्टी के एक पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं और उस पर कलश स्थापित करें।
  • कलश में आम के पत्ते रखें और उसमें जल या गंगाजल भर दें।
  • कलश में एक सुपारी, कुछ सिक्के और दूर्वा के साथ हल्दी की गांठ जरूर डालें।
  • एक नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर रखें।
  • इसके बाद मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें।
  • कलश स्थापना के साथ ही अखंड ज्योति भी जलाएं।
  • कलश स्थापित कर मां दुर्गा की विधि अनुसार पूजा करें।
  • कलश मंदिर की उत्तर-पूर्व दिशा में ही स्थापित करें।

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डिस्क्लेमर- ''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी''।


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