Bhishma Ashtami Vrat Katha: भीष्म अष्टमी पर पूजा करते समय जरुर पढ़ें यह व्रत कथा
Bhishma Ashtami Vrat Katha आज भीष्म अष्टमी है और आज के दिन पूजा के दौरान व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। आइए पढ़ते हैं भीष्टम अष्टमी की व्रत कथा। पौराणिक कथा के अनुसार देवी गंगा और राजा शांतनु के आठवें पुत्र भीष्म थे।

Bhishma Ashtami Vrat Katha: आज भीष्म अष्टमी है और आज के दिन पूजा के दौरान व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। आइए पढ़ते हैं भीष्टम अष्टमी की व्रत कथा। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी गंगा और राजा शांतनु के आठवें पुत्र भीष्म थे। देवव्रत इनका मूल नाम था। यह नाम उन्हें जन्म के समय दिया गया था। वह अपने पिता को प्रसन्न करना चाहते हैं ऐसे में उन्होंने जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन किया। मुख्य रूप से इन्हें मां गंगा द्वारा पोषित किया गया था। फिर बाद में शास्त्र विद्या के लिए इन्हें महर्षि परशुराम के पास भेजा गया। शुक्राचार्य के मार्गदर्शन में उन्होंने महान युद्ध कौशल सीखी। साथ ही अजेय बनने की सीख भी हासिल की।
शिक्षा पूरी करने के बाद, देवी गंगा देवव्रत को अपने पिता, राजा शांतनु के पास लायीं और फिर उन्हें हस्तिनापुर का राजकुमार घोषित किया गया। इस दौरान, राजा शांतनु को सत्यवती नाम की एक महिला से प्रेम हो गया और वह उससे विवाह करना चाहते थे। लेकिन सत्यवती के पिता ने एक शर्त पर गठबंधन के लिए सहमति व्यक्त की। शर्त यह थी कि राजा शांतनु और सत्यवती की संतानें ही भविष्य में हस्तिनापुर राज्य पर शासन करेंगी।
देवव्रत ने अपने पिता के लिए स्थिति को देखते हुए अपना राज्य छोड़ दिया। उन्होंने अजीवन शादी न करने का संकल्प लिया। उनके इस बलिदान के कारण ही उन्हें देवव्रत भीष्म नाम दिया गया। इनकी प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा कहा गया। उनके पिता यानी राजा शांतनू यह देख बेहद खुश हुए और उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। अपने पूरे जीवन में उन्हें भीष्म पितामह के रूप में बहुत सम्मान मिला।
वे कौरवों के पक्ष में खड़े रहकर महाभारत का युद्ध लड़ रहे थे। उन्होंने शिखंडी के साथ युद्ध न करने और किसी भी तरह का हथियार न चलाने का संकल्प लिया था। फिर शिखंडी के पीछे खड़े होकर उन्होंने भीष्म पर हमला कर दिया। वो बाणों की शैय्या पर घायल होकर गिर पड़े। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे। ऐसे में यह माना जाता है कि जो व्यक्ति उत्तरायण के शुभ दिन पर अपना शरीर त्यागता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। उत्तरायण को अब भीष्म अष्टमी के रूप में जाना और मनाया जाता है।
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