Bhishma Ashtami 2025: महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह को कब और किसने दिया था इच्छा मृत्यु का वरदान?
ज्योतिषियों की मानें तो माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी (Bhishma Ashtami 2025 Date) तिथि पर गुप्त नवरात्र की अष्टमी मनाई जाती है। गुप्त नवरात्र के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही साधक मनचाहा वरदान पाने के लिए मां दुर्गा की कठिन साधना करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा साधक को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को एकोदिष्ट श्राद्ध मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह ने माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर अपने शरीर का त्याग किया था। इस शुभ अवसर पर भीष्म अष्टमी मनाई जाती है।
ज्योतिषियों की मानें तो भीष्म अष्टमी पर कई मंगलकारी शुभ योग बन रहे हैं। इन योग में जगत के नाथ भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। साथ ही पितृ दोष से मुक्ति मिलेगी। इस दिन पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है। इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भीष्म पितामह का अंतिम संस्कार पांडवों द्वारा किया गया था। लेकिन क्या आपको पता है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान कब और किसने दिया था? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
यह भी पढ़ें: भीष्म अष्टमी पर भद्रावास समेत बन रहे हैं 6 मंगलकारी संयोग, मिलेगा दोगुना फल
कौन थे भीष्म पितामह?
भीष्म पितामह महाभारत के महान योद्धा थे। इनके पिता का नाम महाराजा शान्तनु था और मां गंगा थीं। मां गंगा ने भीष्म पितामह को जन्म दिया था। बचपन में भीष्म पितामह का नाम देवव्रत था। देवव्रत बाल्यावस्था से महान योद्धा थे। उनमें पिता की तरह न केवल अतुल बल था, बल्कि पुरषार्थ भी था। इस वजह से उन्हें पितामह भी कहा जाता है।
कब ली अंतिम सांस?
सनातन शास्त्रों में निहित है कि महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने कौरवों का साथ दिया और कौरवों की तरफ से लड़ाई की। उन्होंने कौरवों का नेतृत्व किया। एक समय ऐसा भी आ गया था, जब धनुर्धर अर्जुन ने पितामह भीष्म पर वार करने से इंकार कर दिया था। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भविष्य से अवगत कराया। इसमें भीष्म पितामह के पूर्व और वर्तमान जन्म की मृत्यु की जानकारी दी।
तब जाकर अर्जुन ने पितामह से युद्ध किया। इस युद्ध में अर्जुन के बाणों से पितामह भीष्म घायल हो गए थे। हालांकि, सूर्य दक्षिणायन होने के चलते भीष्म पितामह ने अपने प्राण का त्याग नहीं किया। जब सूर्य उत्तरायण हुए, तो भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था। माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को पितामह भीष्म ने अपनी अंतिम सांस ली थी।
किसने दिया इच्छा मृत्यु का वरदान?
सनातन शास्त्रों में निहित है कि महाराजा शान्तनु ने अपने पुत्र देवव्रत को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। यह वरदान उन्होंने भीष्म के आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा से प्रसन्न होकर दिया था। धर्म जानकारों की मानें तो अपने पिता शान्तनु के सत्यवती से विवाह कराने के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य यानी आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा की थी। आसान शब्दों में कहें तो पितामह भीष्म ने अपने पिता को आजीवन विवाह न करने का वचन दिया था। पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर महाराजा शान्तनु ने अपने पुत्र देवव्रत को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था।
यह भी पढ़ें: क्या होता है एकोदिष्ट श्राद्ध और कैसे भीष्म पितामह से जुड़ा है कनेक्शन?
अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।