Bhishma Ashtami 2025 Date: कब और क्यों मनाई जाती है भीष्म अष्टमी? नोट करें शुभ मुहूर्त एवं योग
धार्मिक मत है कि माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर (Bhishma Ashtami 2025) भद्रावास योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहे हैं। इसके साथ ही रवि योग का भी संयोग है। इन योग में पितरों का तर्पण एवं पिंडदान करने से साधक पर पूर्वजों की कृपा बरसेगी। इस शुभ अवसर पर साधक भीष्म पितामह के नाम से एकोदिष्ट श्राद्ध कर सकते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भीष्म पितामह को महाभारत का मुख्य पात्र माना जाता है। भीष्म पितामह के पिता शांतनु और माता पुण्यदायिनी मां गंगा हैं। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने हस्तिनापुर पर राजा बनकर राज्य नहीं किया, बल्कि संरक्षक बन हस्तिनापुर की रक्षा की। कई अवसर पर भीष्म पितामह ने आंख भी मूंद ली। हालांकि, परिस्थिति विषम होने के चलते उन्होंने ऐसा किया।
धर्म जानकारों की मानें तो भीष्म पितामह की अनदेखी के चलते महाभारत को रोका नहीं जा सका। भीष्म पितामह ने कई बार दुर्योधन को गलत कार्य के लिए न रोका और न ही टोका। इस वजह से दुर्योधन ने शक्ति का गलत इस्तेमाल किया। आखिकार, कौरवों का सर्वनाश हो गया। इसमें भीष्म पितामह भी शामिल थे। धार्मिक कर्तव्यों के चलते भीष्म पितामह ने अपने तप और बल का त्याग किया। लेकिन क्या आपको पता है कि भीष्म अष्टमी क्यों और कब मनाई जाती है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
यह भी पढ़ें: पितरों का तर्पण करते समय करें इस स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष होगा दूर
भीष्म अष्टमी कब मनाई जाती है?
सनातन शास्त्रों की मानें तो माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था। इसके लिए हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर एकोदिष्ट श्राद्ध किया जाता है। इस शुभ अवसर पर भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। महाभारत युद्ध के दौरान महान धनुर्धर अर्जुन की बाणों से भीष्म पितामह घायल हो गए थे।
भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, लेकिन उन्होंने कई अवसर पर असत्य के खिलाफ आवाज नहीं उठाई थी। अतः भीष्म पितामह के मन में ग्लानि थी कि कितना भी श्रेष्ठ बनने के बाद भी गलती संभव है। इसके लिए भीष्म पितामह दोबारा पृथ्वी लोक पर नहीं आना चाहते थे। इसी वजह से भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने के बाद माघ माह को देह त्यागने के लिए चुना।
भीष्म अष्टमी शुभ मुहूर्त (Bhishma Ashtami Shubh Muhurat)
माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 05 फरवरी को देर रात 02 बजकर 30 मिनट पर होगी और समाप्ति 06 फरवरी को देर रात 12 बजकर 35 मिनट पर होगी। सनातन धर्म में सर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। अत: इस साल 05 फरवरी को भीष्म अष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन श्राद्ध के लिए समय सुबह 11 बजकर 30 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 41 मिनट तक है।
यह भी पढ़ें: क्या होता है एकोदिष्ट श्राद्ध और कैसे भीष्म पितामह से जुड़ा है कनेक्शन?
अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।