Bhanu Saptami 2025: भानु सप्तमी पर इस तरह दें सूर्य देव को अर्घ्य, करें इन मंत्रों का जप
पंचांग के अनुसार रविवार 20 अप्रैल को भानु सप्तमी (Bhanu Saptami 2025) पड़ रही है। यह पर्व हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर माया जाता है। रविवार के दिन पड़ने के कारण इस दिन को महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। ऐसे में आप इस दिन पर सूर्य देव के मंत्रों का जप कर शुभ फलों की प्राप्ति कर सकते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भानु सप्तमी के दिन मुख्य रूप से सूर्य देव की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव को आत्मा का कारण कमाना गया है। ऐसे में अगर आप भानु सप्तमी के दिन सूर्य देव की उपासना करते हैं, तो इससे आपको हर काम में सफलता मिल सकती है।
साथ ही भगवान सूर्यनारायण की कृपा से शारीरिक और मानसिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन पर सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद उनके मंत्रों का जप जरूर करें।
कैसे दें सूर्य देव को अर्घ्य
सूर्यदेव ग्रहों के राजा हैं। इसी के साथ रोजाना सूर्योदय के दौरान सूर्य देव को अर्घ्य देने से जातक की कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है साथ ही करियर संबंधी समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है। ऐसे में आप भानु सप्तमी के दिन इस विधि से सूर्य देव को अर्घ्य दे सकते हैं।
इसके लिए सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें। इसके बाद एक तांबे के लोटे में जल और लाल फूल व रोली डालें। अब ॐ सूर्याय नम: मंत्र का जप करते हुए सूर्य देव को जल अर्पित करें। अंत में सूर्य देव को नमस्कार करें और सुख-समृद्धि की कामना करें।
सूर्य देव के मंत्र
1. ॐ सूर्यनारायणायः नमः।
2. ऊँ घृणि सूर्याय नमः
3. सूर्य ग्रह के 12 मंत्र -
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सूर्याय नमः।
ॐ रवेय नमः।
ॐ पूषणे नमः।
ॐ दिनेशाय नमः।
ॐ सावित्रे नमः।
ॐ प्रभाकराय नमः।
ॐ मित्राय नमः।
ॐ उषाकराय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ दिनमणाय नमः।
ॐ मार्तंडाय नमः।
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4. सूर्याष्टकम
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
बृंहितं तेजःपुञ्जं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
बन्धुकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजः प्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्
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