Bhagwat Geeta: गीता के अनुसार क्या है वर्ण व्यवस्था, ब्राह्मण और क्षत्रिय में होने चाहिए ये गुण
Bhagwat Geeta महाभारत की रणभूमि में अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान सर्वश्रेष्ठ ज्ञान माना गया है। भगवत गीता में दिए गए उपदेशों में भगवान श्री कृष्ण ने चारों वर्णों के लोगों में कुछ गुण बताए हैं। जिनके होने पर ही आप उस वर्ण के पात्र कहलाएंगे। आइए जानते हैं गीता के अनुसार वह गुण कौन-से हैं।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Bhagwat Geeta: वर्ण व्यवस्था के बारे में कहा जाता है कि यह समाज को बांटने का काम करती है। कुछ लोगों ने वर्ण व्यवस्था के नाम पर अपनी स्वार्थ सिद्धि भी की है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल में वर्ण व्यवस्था का क्या अर्थ है। गीता में भी वर्ण व्यवस्था का वर्णन किया गया है। इसमें प्रत्येक वर्ण के कुछ गुण बताए गए हैं जिनका अभाव होने पर व्यक्ति उस वर्ण का पात्र नहीं रहता। तो चलिए जानते हैं कि गीता के अनुसार वर्ण व्यवस्था क्या है।
किस पर आधारित है वर्ण व्यवस्था
आज वर्ण व्यवस्था का अर्थ जन्म से लगाया जाता है। लेकिन भगवत गीता का अनुसरण करने पर यह ज्ञात होता है कि वर्ण व्यवस्था की शुरुआत कर्म और गुणों के आधार पर हुई थी। गीता में चारों वर्णों के गुणों और कर्मों का तर्कसंगत वर्णन किया गया है। पुराणों में ऐसी अनेक कथाएं मिलती हैं जहां छोटे वर्ण में जन्म लेकर भी कई लोगों ने अपने कर्मों से उच्च स्थान प्राप्त किया है।
ब्राह्मण के गुण
गीता के अनुसार, ब्राह्मण में ये नौ गुण होने अनिवार्य हैं। अगर ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी किसी व्यक्ति के अंदर यह गुण नहीं पाए जाते तो उसे ब्राह्मण कहलाने का अधिकार नहीं है।
- जिसका मन वश में हो
- जो इन्द्रियों का दमन करे
- वाणी और मन को शुद्ध करना और धर्म के पालन के लिए कष्ट सहना
- भीतर और बाहर से शुद्ध रहना
- दूसरों को क्षमा करना
- निष्कपट भाग रखना
- वेद, शास्त्र आदि का ज्ञान होना तथा दूसरों ज्ञान कराना
- उपनिषद प्रतिपादित आत्मज्ञान का अनुभव
- वेद, शास्त्र और ईश्वर में श्रद्धा रखना
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क्षत्रिय में होने चाहिए ये गुण
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने क्षत्रिय में सात गुण बताए हैं। अगर किसी में यह गुण नहीं पाए जाते तो क्षत्रिय कुल में जन्म लेकर भी वह क्षत्रिय नहीं कहला सकता।
- शूर वीरता होनी चाहिए
- क्षत्रिय का तेजस्वी होना जरूरी है
- धैर्य होना चाहिए
- प्रजा के संचालन में करना आना चाहिए
- जो युद्ध में कभी पीठ न दिखाएं
- दान करने में हमेशा आगे रहे।
- शासन करने का भाव होना चाहिए।
किसे कहते हैं वैश्य
भगवत गीता के अनुसार जो व्यापार करता है उसे वैश्य कहते हैं। आज के समय में यह एक स्वाभाविक कर्म बन गया है। गीता में यह भी वर्णन मिलता है कि एक ही परिवार के सदस्य अगर अलग-अलग कर्म करते हैं जैसे- एक कारीगर है, दूसरा सदस्य डॉक्टर है और तीसरा दूसरा कहीं साफ-सफाई का काम करता है तो इस प्रकार एक ही परिवार में सभी वर्णों के लोग मिल सकते हैं।
गीता के अनुसार कौन हैं शूद्र
जो अपने कर्म से दूसरों की सेवा करने का काम करते हैं वह शूद्र कहलाते हैं। भगवत गीता के एक श्लोक में इस बात का वर्णन मिलता है कि यदि शूद्र वर्ण का होकर भी कोई व्यक्ति एक ब्राह्मण से उच्च कर्म करता है तो उसका स्थान ब्राह्मण से ऊपर है।
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