Bhagwat Geeta: क्या शिक्षा देते हैं भगवत गीता के ये श्लोक, बच्चों को जरूर पढ़ाएं
भगवत गीता में श्रीकृष्ण सिर्फ कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। उनके मुख से निकले गीता में काफी सारे श्लोक जीवन दर्शन का एहसास कराते हैं। इसमें कई श्लोक ऐसे भी हैं जो बच्चों के लिए बहुत उपयोगी साबित होंगे।
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Bhagwat Geeta: आज के समय में बच्चे फोन के गुलाम बनते जा रहे हैं। जिस कारण उनमें सस्कारों की कमी पाई जाती है। ऐसे में उनके परिवारवालों को उन्हें गीता के ये श्लोक पढ़ाने और समझाने चाहिए। इन श्लोकों से उनमें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
बच्चों की आदत होती है कि अगर वह कोई काम करते हैं तो उन्हें उसके परिणाम का बेसब्री से इंतजार रहता है। ऐसे में यह श्लोक उनके बहुत काम आ सकता है। इस श्लोक का अर्थ है कि कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म को फल की इच्छा के लिए मत करो।
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
अर्थ- विषय-वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे लगाव हो जाता है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में बाधा आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। इसलिए कोशिश करें कि किसी चीज के लगाव से दूर रहते हुए कर्म में लीन रहा जाए। बच्चे किसी चीज को देखते ही उसकी जिद करने लगते हैं। और न मिलने पर जल्द ही गुस्सा भी हो जाते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए यह श्लोक उत्तम है।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
अर्थ- क्रोध से मनुष्य की मति यानी बुदि्ध मारी जाती है। बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है। कई बच्चों को बहुत गुस्सा आता है। ऐसे में यह श्लोक उन्हें गुस्सा करने से होने नुकसानों से अवगत कराता है।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
अर्थ- श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य भी वैसा ही आचरण या कहें कि वैसा ही काम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं। यह श्लोक अच्छे आचरण के फायदे बताता है। जो बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है।
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
अर्थ- श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति को प्राप्त होते हैं। पढ़ने वाले बच्चों के लिए यह श्लोक बहुत ही उत्तम है। यह उन्हें एकाग्रचित होकर अपने लक्ष्य की ओर ध्यान लगाने के लिए प्रेरित करता है।
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