क्या है Bhadrapada Purnima के स्नान-दान का शुभ मुहूर्त? इन चीजों के दान से होगा धन लाभ
भाद्रपद पूर्णिमा (Bhadrapada Purnima 2025) का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है जो इस साल 7 सितंबर को मनाई जाएगी। इस दिन स्नान दान और पितरों का तर्पण करने से सुख-समृद्धि मिलती है। वहीं इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और जरूरतमंदों को दान करना भी शुभ माना जाता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है, और भाद्रपद महीने की पूर्णिमा को इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन व्रत, स्नान, दान और पितरों का तर्पण करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस साल भाद्रपद पूर्णिमा (Bhadrapada Purnima 2025) 7 सितंबर यानी कल मनाई जाएगी। ऐसे में आइए इस तिथि से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं, जो इस प्रकार हैं -
स्नान-दान शुभ मुहूर्त और महत्व (Bhadrapada Purnima 2025 Snan-Daan Muhurat Or Significance)
हिंदू पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 07 सितंबर को देर रात 01 बजकर 41 मिनट पर होगी। वहीं, तिथि का समापन 07 सितंबर को 11 बजकर 38 मिनट पर होगा। ऐसे में भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत 7 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन पवित्र नदियों में या फिर घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान करने का बड़ा महत्व है। माना जाता है कि ऐसा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मन को शांति मिलती है।
वहीं, शास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त को स्नान के लिए सबसे उत्तम समय माना जाता है। ऐसे में आप यहां दिए गए मुहूर्त पर स्नान और दान कर सकते हैं।
- ब्रह्म मुहूर्त - 04 बजकर 31 मिनट से 05 बजकर 16 मिनट तक
- विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 44 मिनट से 03 बजकर 15 मिनट तक
- सूर्योदय - सुबह 06 बजकर 02 मिनट पर
इन चीजों का करें दान (Bhadrapada Purnima 2025 Daan)
- अन्न और वस्त्र - किसी भी दान में अन्न दान सबसे उत्तम माना गया है। इस दिन जरूरतमंदों को अनाज, भोजन और वस्त्र दान करने से घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है।
- चांदी - कुंडली में चंद्रमा को मजबूत करने और धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए चांदी का दान बहुत शुभ माना जाता है।
- सफेद वस्तुएं - इस दिन सफेद वस्तुएं जैसे दूध, दही, चावल, चीनी और सफेद मिठाई का दान करने से घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है।
- काले तिल - पितृपक्ष की शुरुआत होने के कारण इस दिन काले तिल का दान करना विशेष फलदायी होता है। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
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