बटुक भैरव की उपासना गृहस्थों के लिए सर्वाधिक फलदायी है
काशीवासी भैरव के सेवक होने के कारण कलि और काल से नहीं डरते। भैरव के सेवकों से यमराज भय खाते हैं। काशी में भैरव का दर्शन करने से सभी अशुभ कर्म नष्ट हो जाते हैं। श्री बटुक भैरव जयंती 28 मई 2015 (गुरुवार) के दिन है।
काशीवासी भैरव के सेवक होने के कारण कलि और काल से नहीं डरते। भैरव के सेवकों से यमराज भय खाते हैं। काशी में भैरव का दर्शन करने से सभी अशुभ कर्म नष्ट हो जाते हैं। श्री बटुक भैरव जयंती 28 मई 2015 (गुरुवार) के दिन है।
सभी जीवों के जन्मांतरों के पापों का नाश हो जाता है। अगहन की अष्टमी को विधिपूर्वक पूजन करने वालों के पापों का नाश श्री भैरव करते हैं।
मंगलवार या रविवार को जब अष्टमी या चतुर्दशी तिथि पड़े, तो काशी में भैरव की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। इस यात्रा के करने से जीव समस्त पापो से मुक्त हो जाता है।
जो लोग काशी में भैरव के भक्तों को कष्ट देते हैं, उन्हें दुर्गति भोगनी पड़ती है। जो मनुष्य श्री विश्वेश्वर की भक्ति करता है तथा भैरव की भक्ति नहीं करता, उसे पग- पग पर कष्ट भोगना पड़ता है। पापभक्षण भैरव की प्रतिदिन आठ प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
आमर्दक पीठ पर छः मास तक जो लोग अपने इष्ट देव का जप करते हैं, वे समस्त वाचिक, मानसिक एवं कायिक पापों में लिप्त नहीं होते। काशी में वास करते हुए, जो भैरव की सेवा, पूजा या भजन नहीं करे, उनका पतन होता है।
श्री भैरवनाथ साक्षात् रुद्र हैं। शास्त्रों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि वेदों में जिस परमपुरुष का नाम रुद्र है, तंत्रशास्त्रमें उसी का भैरव के नाम से वर्णन हुआ है। शिवपुराण में भैरव को भगवान शंकर का पूर्णरूप बतलाया गया है। तत्वज्ञानी भगवान शंकर और भैरवनाथ में कोई अंतर नहीं मानते हैं। वे इन दोनों में अभेद दृष्टि रखते हैं।
काशी (वाराणसी स्थित) कोतवाल बटुक भैरव की उपासना गृहस्थों के लिए सर्वाधिक फलदायी है। श्रद्धा विश्वास के साथ इनकी उपासना करने वालों की इच्छा बाबा जरुर पूरा करते है। रूद्रावतार बटुक भैरव हर समस्याओं से छुटकारा दिलाते है। राहु व शनि के पीड़ित व्यक्ति को बाबा की उपासना अवश्य करनी चाहिए। बड़े से बड़ा यज्ञ बिना इनके पूरा नहीं होता।
यतिदण्डैश्वर्य-विधान में शक्ति के साधक के लिए शिव-स्वरूप भैरवजीकी आराधना अनिवार्य बताई गई है। रुद्रयामल में भी यही निर्देश है कि तन्त्रशास्त्रोक्तदस महाविद्याओं की साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए उनके भैरव की भी अर्चना करें।
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उदाहरण के लिए कालिका महाविद्या के साधक को भगवती काली के साथ कालभैरव की भी उपासना करनी होगी। इसी तरह प्रत्येक महाविद्या-श क्तिके साथ उनके शिव (भैरव) की आराधना का विधान है।
दुर्गासप्तशती के प्रत्येक अध्याय अथवा चरित्र में भैरव-नामावली का सम्पुट लगाकर पाठ करने से आश्चर्यजनक परिणाम सामने आते हैं, इससे असम्भव भी सम्भव हो जाता है। श्रीयंत्रके नौ आवरणों की पूजा में दीक्षा प्राप्त साधक देवियों के साथ भैरव की भी अर्चना करते हैं।
अष्टसिद्धि के प्रदाता भैरवनाथके मुख्यत:आठ स्वरूप ही सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं पूजित हैं। इनमें भी काल भैरव तथा बटुकभैरव की उपासना सबसे ज्यादा प्रचलित है। काशी के कोतवाल काल भैरवकी कृपा के बिना बाबा विश्वनाथ का सामीप्य नहीं मिलता है।
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वाराणसी में निवघ्न जप-तप, निवास, अनुष्ठान की सफलता के लिए काल भैरव का दर्शन-पूजन अवश्य करें। इनकी हाजिरी दिए बिना काशी की तीर्थयात्रा पूर्ण नहीं होती। इसी तरह उज्जयिनी के कालभैरवकी बडी महिमा है।
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