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    Vinayak Chaturthi 2025: भगवान गणेश की पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, पूरी होगी हर मनोकामना

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 31 Mar 2025 10:30 PM (IST)

    ज्योतिषियों की मानें तो विनायक चतुर्थी पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में भगवान गणेश की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। साथ ही करियर और कारोबार को नया आयाम मिलेगा। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है। साधक चतुर्थी के दिन पूजा के बाद (Vinayak Chaturthi 2025 Date) आर्थिक स्थिति के अनुसार दान करते हैं।

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    Vinayak Chaturthi 2025: भगवान गणेश को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, मंगलवार 01 अप्रैल को चैत्र माह की विनायक चतुर्थी है। यह पर्व हर महीने शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर जगत की देवी मां दुर्गा और भगवान गणेश की भक्ति भाव से पूजा की जाएगी। साथ ही साधक मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए विनायक चतुर्थी का व्रत रखेंगे। इस व्रत को करने से साधक के आय, आयु और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही सभी प्रकार के दुख एवं संकट दूर हो जाएंगे।

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    सनातन शास्त्रों में निहित है कि विनायक चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होता है। बुध देव व्यापार के दाता हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति अपने कारोबार में बेहतर करते हैं। समय के साथ कारोबार में चार चांद लग जाते हैं। अगर आप भी भगवान गणेश को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो विनायक चतुर्थी के दिन भक्ति भाव से गणपति बप्पा मोरया की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें। वहीं, पूजा का समापन गणेश जी की आरती से करें।

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    1. वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ।

    निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

    2. दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।

    धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥

    3. ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चिरचिर गणपतिवर वर देयं मम वाँछितार्थ कुरु कुरु स्वाहा ।

    4. ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।

    5. ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥

    6. ॐ नमो ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्लीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी मम गृहे धनं देही चिन्तां दूरं करोति स्वाहा ॥

    7. गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।

    द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥

    विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।

    द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ ॥

    विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌ ।

    8. ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

    9. विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लंबोदराय सकलाय जगद्धितायं।

    नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।

    10. एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः।

    प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने।।

    ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र

    ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।

    ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्॥

    सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,

    एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:।

    दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्॥

    गणेश जी की आरती

    सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची

    नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची

    सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची

    कंठी झलके माल मुकताफळांची

    जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

    दर्शनमात्रे मनः कमाना पूर्ति

    जय देव जय देव

    रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा

    चंदनाची उटी कुमकुम केशरा

    हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा

    रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया

    जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

    दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति

    जय देव जय देव

    लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना

    सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना

    दास रामाचा वाट पाहे सदना

    संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना

    जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

    दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति

    जय देव जय देव

    शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को

    दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को

    हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को

    महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को

    जय जय जय जय जय

    जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता

    धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता

    जय देव जय देव

    अष्ट सिधि दासी संकट को बैरी

    विघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारी

    कोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरी

    गंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरी

    जय जय जय जय जय

    जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता

    धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता

    जय देव जय देव

    भावभगत से कोई शरणागत आवे

    संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे

    ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे

    गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे

    जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता

    धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता

    जय देव जय देव

    सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची

    नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची

    सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची

    कंठी झलके माल मुकताफळांची

    जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति

    दर्शनमात्रे मनः कमाना पूर्ति

    जय देव जय देव

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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