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    Apara Ekadashi 2025: अपरा एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ करें कान्हा जी की पूजा, चमक जाएगी आपकी किस्मत!

    अपरा एकादशी व्रत का सनातन धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है जो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को यह व्रत मनाया जाएगा। इस दिन कृष्ण जी की पूजा और मधुराष्टक स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में खुशहाली आती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है तो आइए पढ़ते हैं।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Thu, 22 May 2025 08:35 AM (IST)
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    Apara Ekadashi 2025: मधुराष्टक स्तोत्र का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में अपरा एकादशी व्रत का बहुत ज्यादा महत्व है। इस दिन को साल के सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के लिए अर्पित है। अपरा एकादशी का दूसरा नाम अचला एकादशी है। हिंदू पंचांग के अनुसार, अपरा एकादशी जयेष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है। इस महीने यह 23 मई, 2025 यानी कल मनाई जाएगी। कहा जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा से भी बेहद चमत्कारी लाभ मिलते हैं। इसके साथ ही जीवन में खुशहाली आती है। ऐसे में इस दिन सुबह उठें और पवित्र स्नान करें। फिर तुलसी जी को जल चढ़ाएं।

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    इसके बाद कृष्ण जी के सामने दीपक जलाएं और उनका ध्यान करें। फिर मधुराष्टक स्तोत्र का पाठ करें और आखिरी में आरती करें। ऐसा करने जीवन के सभी कष्टों में छुटकारा मिलेगा।

    ।।।मधुराष्टक स्तोत्र।।

    अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।

    हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥

    वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।

    चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥

    वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।

    नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥

    गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।

    रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥

    करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।

    वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥

    गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।

    सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥

    गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।

    दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥

    गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।

    दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥

    ।। श्री बांकेबिहारी की आरती।।

    श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ।

    कुन्जबिहारी तेरी आरती गाऊँ।

    श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ।

    श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

    मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे।

    प्यारी बंशी मेरो मन मोहे।

    देखि छवि बलिहारी जाऊँ।

    श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

    चरणों से निकली गंगा प्यारी।

    जिसने सारी दुनिया तारी।

    मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ।

    श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

    दास अनाथ के नाथ आप हो।

    दुःख सुख जीवन प्यारे साथ हो।

    हरि चरणों में शीश नवाऊँ।

    श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

    श्री हरि दास के प्यारे तुम हो।

    मेरे मोहन जीवन धन हो।

    देखि युगल छवि बलि-बलि जाऊँ।

    श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

    आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ।

    हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ।

    श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ।

    श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।