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    Annapurna Mata Katha: कैसे हुई माता अन्नपूर्णा की उत्पत्ति, जानिए भोजन की देवी की कथा

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 02:03 PM (IST)

    हिंदू धर्म ग्रंथों में ऐसी कई पौराणिक कथाएं मिलती हैं जो ज्ञान का भंडार होने के साथ-साथ मानव मात्र को प्रेरणा देने का काम भी करती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का रूप धारण किया था। ऐसे में चलिए जानते हैं कि देवी पार्वती को मां अन्नपूर्णा का अवतार क्यों लेना पड़ा था।

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    Annapurna Mata Katha कैसे हुआ माता अन्नपूर्णा का अवतरण।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में मां अन्नपूर्णा को संसार की भरण-पोषण की देवी के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा की कृपा से भक्तों के अन्न भंडार हमेशा भरे रहते हैं। घर की रसोई में मां अन्नपूर्णा का वास (Annapurna Mata Katha) माना गया है। आज हम आपको देवी अन्नपूर्णा के अवतरण की कथा बताने जा रहे हैं।

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    जानिए पौराणिक कथा

    पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि संसार व अन्न एक माया हैं। साथ ही यह भी कहा कि शरीर व अन्न का कोई विशेष महत्व नहीं है। शिव जी की इस बात को सुनकर माता पार्वती बहुत निराश हुईं और उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे संसार से अन्न को गायब कर देंगी।

    इस कारण पूरी धरती पर अन्न की भारी कमी हो गई। लोग भूख से व्याकुल होने लगे और चारों ओर हाहाकार मच गया। तब माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप धारण किया। माता अपने इस रूप में हाथों में अक्षय पात्र लिए खड़ी थीं।

    भगवान शिव ने लिया भिक्षु का रूप

    अक्षय पात्र एक ऐसा पात्र है, जिसमें भोजन कभी समाप्त नहीं होता। तब भगवान शिव ने भिक्षु का रूप धारण कर देवी से भिक्षा मांगी और इस बात को स्वीकार किया कि शरीर और अन्न का भी अस्तित्व में बड़ा महत्व है।

    अन्नपूर्णा देवी ने सभी को अन्न का दान दिया, जिसे भगवान शिव ने पृथ्वी वासियों में बांट दिया। इससे पृथ्वी पर आए अकाल की समस्या दूर हुई। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह घटना मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन घटित हुई थी, इसलिए हर साल इस दिन को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है।

    यहां स्थित है मंदिर

    काशी में विश्वनाथ मंदिर के पास ही अन्नपूर्णा देवी का भी मंदिर स्थित है। मान्यता है कि यह वही स्थान है, जहां शिव जी स्वयं भिक्षुक रूप में माता से भोजन का दान मांग रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि माता के दरबार से मिले खजाने से श्रद्धालुओं के घर के अन्न भंडार सदा भरे रहते हैं। साथ ही यह मंदिर देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जो श्री यंत्र के आकार में बना हुआ है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।