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    Anant Chaturdashi 2024: भगवान अनंत के अपमान से ऋषि कौंडिन्य को करना पड़ा दुखों का सामना, पढ़ें इससे जुड़ी कथा

    Updated: Mon, 16 Sep 2024 10:21 AM (IST)

    अनंत चतुर्दशी का पर्व महत्वपूर्ण माना जाता है। पंचांग के अनुसार इस बार अनंत चतुर्दशी का पर्व 17 सितंबर को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और घर में सुख-शांति का आगमन होता है। आइए इस लेख में पढ़ते हैं अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi Vrat Katha) व्रत कथा।

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    Anant Chaturdashi 2024: अनंत चतुर्दशी व्रत कथा

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi 2024) का त्योहार अधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने का विधान है।  मान्यता है कि इस दिन व्रत का पाठ न करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं अनंत चतुर्दशी व्रत (Anant Chaturdashi 2024 Vrat Katha) कथा।  

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    अनंत चतुर्दशी व्रत कथा

    पौराणिक कथा के अनुसार, युधिष्ठिर एक बार राजसूय यज्ञ का आयोजन करवा रहे थे। यज्ञ का मंडप जल में स्थल तथा स्थल में जल की तरह लग रहे थे। यज्ञ के दौरान कई तरह की सावधानियां रखी गई थीं, लेकिन फिर भी कई लोग उस मंडप को देख धोखा खा चुके थे। एक बार दुर्योधन मंडप के पास पहुंचे। वो तालाब को स्थल समझकर उसमें गिर गए। यह देख द्रौपदी को हंसी आ गई। उन्होंने दुर्योधन को अंधों की संतान कह दिया। द्रौपदी को हंसी को देख दुर्योधन को क्रोध आ गया। ऐसे में उन्होंने पांडवों से बदला लेने के बारे में सोचा। इस द्वेष में उसने पांडवों को द्यूत-क्रीड़ा में हरा दिया।

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    पांडवों को करना पड़ा वनवास का सामना

    इस वजह से पांडवों को हारने की वजह से बारह सालों का वनवास काटना पड़ा। इस दौरान उन्होंने कई तरह की परेशानियों का सामना किया। एक समय ऐसा आया जब भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने के लिए गए। तब युधिष्ठिर ने कृष्ण जी से अपने दुख के बारे में बताया और समस्या से मुक्ति पाने के लिए उपाय पूछा। ऐसे में प्रभु ने अनंत भगवान का व्रत करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इस व्रत को करने से सभी दुख दूर होंगे। इस संदर्भ में कृष्ण जी ने युधिष्ठिर को कथा सुनाई, जो इस प्रकार है-

    सुशीला का विवाह से ऋषि कौंडिन्य के साथ हुआ

    प्राचीन काल में सुमंत नाम का तपस्वी ब्राह्मण था। उसकी बेटी परम सुंदरी धर्मपरायण और ज्योतिर्मयी कन्या थी। कुछ समय के बाद ब्राह्मण की पत्नी दीक्षा की मृत्यु हो गई। ऐसे में उसने दोबारा विवाह कर लिया और अपनी पुत्री सुशीला का विवाह ऋषि कौंडिन्य से करवा दिया। इसके बाद कौंडिन्य सुशीला को लेकर अपने आश्रम की तरफ चल दिए।

    ऋषि कौंडिन्य ने किया भगवान अनंत का अपमान

    आश्रम पहुंचने के दौरान ही रात हो गई और वो दोनों नदी तट पर ही रुक गए। इस दौरान सुशीला ने कुछ स्त्रियों को सुंदर वस्त्र में देखा और वह किसी भगवान की उपासना कर रही थी। इस बारे में सुशीला ने स्त्रियों से पूछा तो उन्होंने अनंत व्रत के महत्व के बारे में बताया। सुशीला ने भी उसी जगह पर पूजा की। उसने चौदह गांठों वाला डोर हाथ में बांध लिया और अपनी पति ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई। डोर के बारे कौंडिन्य के द्वारा पूछे जाने पर सुशीला ने व्रत के बारे में बताया, परंतु ऋषि ने उसे तोड़ दिया और आग में जला दिया। ऐसा करने से अनंत भगवान का अपमान हुआ। इसकी वजह से ऋषि कौंडिन्य बहुत दुखी हुए। उनके पास जो कुछ भी था वो सब नष्ट हो गया। उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा कि इस दरिद्रता का कारण क्या है। तब सुशीला ने उन्हें डोरा जलाने वाली याद दिलाई।

    ऋषि कौंडिन्य को गलती का हुआ एहसास

    उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उस डोरे की प्राप्ति के लिए कई दिनों तक वो वहीं रहे, लेकिन उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई। लंबे समय तक भटकने के पश्चात वो भूमि पर गिर पड़े। फिर अनंत भगवान प्रकट हुए। उन्होंने ऋषि कौंडिन्य से कहा कि तुमने मेरा अपमान किया है। इसी वजह से तुमको इस तरह के कष्टों का सामना करना पड़ रहा है। तुम वापस जाओ और सच्चे मन से अनंत व्रत करो। 14 वर्ष के बाद सभी दुख दूर होंगे। ऋषि ने अनंत भगवान की बातों का पालन किया। भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत किया। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से पांडवों को महाभारत के युद्ध में जीत मिली और चिरकाल तक राज्य करते रहे।  

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।