Akhuratha Sankashti Chaturthi पर पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, जाग उठेगा सोया भाग्य
धार्मिक मत है कि भगवान गणेश (Akhuratha Sankashti Chaturthi 2024) की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। ज्योतिष भी कारोबार में तरक्की और उन्नति पाने के लिए भगवान गणेश की पूजा करने की सलाह देते हैं। भगवान गणेश की पूजा करने से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 18 दिसंबर को अखुरथ संकष्टी चतुर्थी है। यह पर्व हर वर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। भगवान गणेश की पूजा करने से आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं। अगर आप भी भगवान गणेश की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो अखुरथ संकष्टी चतुर्थी पर विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय राशि अनुसार इन मंत्रों का जप करें।
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राशि अनुसार मंत्र जाप
- मेष राशि के जातक अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के दिन 'ॐ गणेश्वराय नमः' मंत्र का जप करें।
- वृषभ राशि के जातक भगवान गणेश की पूजा के समय 'ॐ गणेशाय नमः' मंत्र का जप करें।
- मिथुन राशि के जातक अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के दिन 'ॐ गणपतये नमः' मंत्र का जप करें।
- कर्क राशि के जातक गणपति बप्पा की कृपा पाने के लिए 'ॐ गणराजे नमः' मंत्र का जप करें।
- सिंह राशि के जातक अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के दिन 'ॐ गणप्रदाय नमः' मंत्र का जप करें।
- कन्या राशि के जातक आय और सौभाग्य में वृद्धि के लिए 'ॐ गणेष्ठदाय नमः' मंत्र का जप करें।
- तुला राशि के जातक अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के दिन 'ॐ गुणिने नमः' मंत्र का जप करें।
- वृश्चिक राशि के जातक गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए 'ॐ गुणशालिने नमः' मंत्र का जप करें।
- धनु राशि के जातक अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के दिन 'ॐ गणमान्याय नमः' मंत्र का जप करें।
- मकर राशि के जातक भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए 'ॐ गणभूतये नमः' मंत्र का जप करें।
- कुंभ राशि के जातक अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के दिन 'ॐ गणश्रेष्ठाय नमः' मंत्र का जप करें।
- मीन राशि के जातक आर्थिक तंगी से मुक्ति के लिए 'ॐ गणमूर्तये नमः' मंत्र का जप करें।
गणेश जी के मंत्र
1. गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित् ।
2. वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
3. शृणु पुत्र महाभाग योगशान्तिप्रदायकम् ।
येन त्वं सर्वयोगज्ञो ब्रह्मभूतो भविष्यसि ॥
चित्तं पञ्चविधं प्रोक्तं क्षिप्तं मूढं महामते ।
विक्षिप्तं च तथैकाग्रं निरोधं भूमिसज्ञकम् ॥
तत्र प्रकाशकर्ताऽसौ चिन्तामणिहृदि स्थितः ।
साक्षाद्योगेश योगेज्ञैर्लभ्यते भूमिनाशनात् ॥
चित्तरूपा स्वयंबुद्धिश्चित्तभ्रान्तिकरी मता ।
सिद्धिर्माया गणेशस्य मायाखेलक उच्यते ॥
अतो गणेशमन्त्रेण गणेशं भज पुत्रक ।
तेन त्वं ब्रह्मभूतस्तं शन्तियोगमवापस्यसि ॥
इत्युक्त्वा गणराजस्य ददौ मन्त्रं तथारुणिः ।
एकाक्षरं स्वपुत्राय ध्यनादिभ्यः सुसंयुतम् ॥
तेन तं साधयति स्म गणेशं सर्वसिद्धिदम् ।
क्रमेण शान्तिमापन्नो योगिवन्द्योऽभवत्ततः ॥
4. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
5. ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥
ॐ महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥
ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥
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