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    द्वितीय देवी- ब्रह्मचारिणी श्लोक

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    Updated: Thu, 11 Apr 2013 04:34 PM (IST)

    द्वितीय देवी- ब्रह्मचारिणी स्त्रोत-मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

    द्वितीय देवी- ब्रह्मचारिणी स्त्रोत-मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

    देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या। तप का आचरण करने वाली भगवती। जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया, वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म- वेद, तत्व और तप। श् ब्रह्म श् शब्द का अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है। अपने पूर्व जन्म में ये राजा हिमालय के घर पुत्री रुप में उत्पन्न हुई थी। भगवान शंकर को पति रुप में प्राप्त करने के लिए इन्होंने घोर तपस्या की थी। मां दुर्गा का यह दूसरा स्वरुप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला कहा गया है। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। ध्यान

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    वन्दे वांच छि लाभायचन्द्रर्घकृतशेखराम्।

    जपमालाकमण्डलुधराब्रह्मचारिणी शुभाम्घ्

    गौरवर्णास्वाधिष्ठानास्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

    धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्घ्

    पद्मवंदनापल्लवाराधराकातंकपोलांपीन पयोधराम्।

    कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीनिम्न नाभि नितम्बनीम्घ्

    स्तोत्र

    तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारिणीम्।

    ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्घ्

    नवचक्त्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।

    धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्घ्

    शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी।

    शान्तिदामानदा,ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्। कवच

    त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।

    अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलोघ्

    पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरीघ्

    षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।

    अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणीघ् वैसे दूसरी दुर्गा ब्रह्मचारिणी को समस्त विद्याओं की ज्ञाता माना गया है। इनकी आराधना से अनंत फल की प्राप्ति और तप, त्याग, बैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणीश् का अर्थ हुआ, तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। यह स्वरूप श्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए हुए सुशोभित है। कहा जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में पार्वती स्वरूप में थीं। वह भगवान शिव को पाने के लिए 1000 साल तक सिर्फ फल खाकर रहीं और 3000 साल तक शिव की तपस्या सिर्फ पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर की। कड़ी तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। उपासना मंत्र

    दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

    देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

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