Kalashtami November 2023 Date: कार्तिक महीने में कब है कालाष्टमी? जानें- शुभ मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि
Kalashtami November 2023 Date पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी 5 नवंबर को देर रात 12 बजकर 59 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 06 नवंबर को देर रात 03 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी। साधक 05 नवंबर को काल भैरव देव की पूजा विधि-विधान से दिन में किसी समय कर सकते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Kalashtami November 2023 Date: हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। तदनुसार, कार्तिक माह में कालाष्टमी 05 नवंबर को है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र स्वरूप काल भैरव देव की पूजा की जाती है। साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि प्राप्ति हेतु साधक व्रत भी रखते हैं। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक कालाष्टमी पर निशा काल में विशेष अनुष्ठान करते हैं। इस शुभ अवसर पर साधक कठिन भक्ति कर काल भैरव देव की पूजा करते हैं। काल भैरव देव की पूजा निशा काल में की जाती है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक को मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। आइए, पूजा का शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि जानते हैं-
शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी 5 नवंबर को देर रात 12 बजकर 59 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 06 नवंबर को देर रात 03 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी। साधक 05 नवंबर के दिन काल भैरव देव की पूजा दिन में किसी समय कर सकते हैं।
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महत्व
सनातन धर्म में कार्तिक महीने का विशेष महत्व है। इस महीने में गंगा स्नान करने का विधान है। अतः बड़ी संख्या में श्रद्धालु कार्तिक महीने में गंगा स्नान करते हैं। इस अवसर पर मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता है। साथ ही विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। कार्तिक कालाष्टमी पर बड़ी संख्या में साधक गंगा स्नान कर महाकाल की पूजा-उपासना करते हैं।
पूजा विधि
कार्तिक कालाष्टमी तिथि पर ब्रह्म बेला में उठें। इसके बाद घर की साफ-सफाई करें। दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर व्रत संकल्प लें। चूंकि, काल भैरव देव की पूजा निशा काल में की जाती है। अतः रात्रि के समय में भी पूजा अवश्य करें। वहीं, दिन के समय में भी महाकाल की पूजा करें। इस समय पंचोपचार कर फल, फूल, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप, दूध, दही आदि से काल भैरव देव की पूजा करें। पूजा के दौरान शिव चालीसा , भैरव कवच का पाठ और मंत्र का जाप अवश्य करें। पूजा के अंत में आरती-अर्चना कर सुख, समृद्धि और धन प्राप्ति की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। निशा काल में स्नान ध्यान कर पुनः विधि विधान से पूजा एवं आरती करें। इसके बाद फलाहार करें।
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