Kalashtami October 2023 Date: कब है आश्विन माह की कालाष्टमी? जानें-शुभ मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि
Kalashtami October 2023 Date शास्त्रों में निहित है कि कालाष्टमी पर निशाकाल में काल भैरव देव की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख रोग शोक संताप शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Kalashtami October 2023 Date: सनातन पंचांग के अनुसार, हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। तदनुसार, आश्विन माह में कालाष्टमी 06 अक्टूबर को है। इस दिन काल भैरव देव की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही काल भैरव देव के निमित्त व्रत रखा जाता है। तंत्र सीखने वाले साधक कालाष्टमी की रात्रि में अनुष्ठान करते हैं। शास्त्रों में निहित है कि कालाष्टमी पर निशाकाल में काल भैरव देव की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख, रोग, शोक, संताप, शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से काल भैरव देव की पूजा उपासना करते हैं। आइए, पूजा का शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि जानते हैं-
शुभ मुहूर्त
आश्विन माह की अष्टमी तिथि 06 अक्टूबर को प्रातः काल 06 बजकर 34 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 07 अक्टूबर को सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 06 अक्टूबर को कालाष्टमी मनाई जाएगी।
महत्व
कालाष्टमी पर्व का विशेष महत्व है। तंत्र सीखने वाले साधक धूमधाम से कालाष्टमी मनाते हैं। इस दिन काल भैरव देव के मंदिरों को सजाया जाता है। साथ ही विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन हेतु बाबा के दर पर आते हैं। इस अवसर पर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर समेत देश के सभी प्रमुख शिव मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है।
पूजा विधि
कालाष्टमी के दिन ब्रह्म बेला में उठकर सबसे पहले काल भैरव देव को प्रणाम करें। इसके पश्चात, घर की साफ-सफाई करें। दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इस समय आचमन कर स्वयं को शुद्ध करें और नवीन श्वेत वस्त्र धारण करें। अब सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, पंचोपचार कर काल भैरव देव की पूजा पंचामृत,दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें। इस समय भैरव कवच का पाठ और मंत्र का जाप करें। पूजा के अंत में आरती-अर्चना कर सुख, समृद्धि और धन प्राप्ति की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। निशाकाल में स्नान ध्यान कर पुनः विधि विधान से पूजा एवं आरती करें। इसके बाद फलाहार करें। रात्रि समय में कीर्तन और भजन करें। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा पाठ के बाद व्रत खोलें।
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