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    Sharad Purnima 2023: कब है शरद पूर्णिमा? जानें शुभ मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 26 Oct 2023 03:45 PM (IST)

    हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस वर्ष 28 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है। पूर्णिमा तिथि 28 अक्टूबर को प्रातः काल 04 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 29 अक्टूबर को देर रात 01 बजकर 53 मिनट पर समाप्त होगी। शरद पूर्णिमा तिथि पर चंद्र ग्रहण लगने वाला है। चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा।

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    Sharad Purnima 2023: कब है शरद पूर्णिमा? जानें शुभ मुहूर्त, महत्व एवं पूजा विधि

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Sharad Purnima 2023: सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान किया जाता है। साथ ही पूजा, जप-तप और दान किया जाता है। विशेष कार्य में सिद्धि प्राप्ति हेतु साधक पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु के निमित्त व्रत भी रखते हैं। इसके अलावा, पूर्णिमा तिथि पर श्री सत्यनारायण पूजा भी की जाती है। कुल मिलाकर कहें तो पूर्णिमा तिथि बेहद शुभ होता है। धार्मिक मान्यता है कि पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही दुख और संकट दूर हो जाते हैं। आइए, शरद पूर्णिमा की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं महत्व जानते हैं-

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    कब है शरद पूर्णिमा ?

    हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस वर्ष 28 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा है। शरद पूर्णिमा तिथि पर चंद्र ग्रहण लगने वाला है। चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा। इसलिए सूतक भी मान होगा।

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    शुभ मुहूर्त

    पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 28 अक्टूबर को प्रातः काल 04 बजकर 17 मिनट (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार) से शुरू होकर अगले दिन 29 अक्टूबर को देर रात 01 बजकर 53 मिनट पर समाप्त होगी।

    पूजा विधि

    इस दिन ब्रह्म बेला में उठें और सबसे पहले जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को प्रणाम करें। घर की साफ-सफाई करें। दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अगर सुविधा है, तो पवित्र नदी में स्नान करें। अब आचमन कर अपने आप को शुद्ध करें। नवीन वस्त्र धारण कर भगवान सूर्य को जल का अर्घ्य दें। पूर्णिमा तिथि पर तिलांजलि भी की जाती है। अतः बहती जलधारा में तिल प्रवाहित करें। इसके पश्चात, पंचोपचार कर विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीला रंग प्रिय है। अतः पीले रंग का फल, फूल, वस्त्र अर्पित करें। पूजा के समय विष्णु चालीसा का पाठ और मंत्र जाप करें। अंत में आरती-अर्चना कर पूजा संपन्न करें। इसके बाद आर्थिक स्थिति के अनुरूप दान करें।

    डिस्क्लेमर-''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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