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    Vinayak Chaturthi 2025: मार्च की विनायक चतुर्थी पर इस तरह करें गणेश जी को प्रसन्न, सभी बाधाएं होंगी दूर

    Updated: Fri, 28 Feb 2025 05:05 PM (IST)

    चतुर्थी तिथि गणेश जी की पूजा-अर्चना के लिए खास मानी जाती है। जहां शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है वहीं कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी कहलाती है। इस दिन कई साधक व्रत भी करते हैं। ऐसे में आप मार्च में आने वाली विनायक चतुर्थी पर गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ कर गणेश जी की कृपा पा सकते हैं।

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    Vinayak Chaturthi 2025 करें गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ। (Picture Credit: Freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूज्य देव और विघ्नहर्ता जैसे कई नामों से जाना जाता है। माना जाता है कि हर महीने में आने वाली विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi 2025) पर व्रत और गणेश जी की पूजा-अर्चना करने से सभी बाधाएं दूर होने के साथ-साथ मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।

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    विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Vinayak Chaturthi Muhurat)

    फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 02 मार्च को रात 09 बजकर 01 मिटन पर शुरू हो रही है। वहीं चतुर्थी तिथि का समापन 03 मार्च को शाम 06 बजकर 01 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि को देखते हुए फाल्गुन माह की विनायक चतुर्थी सोमवार 03 मार्च को मनाई जाएगी। इस दौरान गणेश जी की पूजा का मुहूर्त इस प्रकार रहेगा -

    विनायक चतुर्थी पूजा मुहूर्त - सुबह 11 बजकर 23 मिनट से दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    गणपति अथर्वशीर्ष

    ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।

    भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।

    स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्‍ँसस्तनूभिः ।

    व्यशेम देवहितं यदायूः ।

    स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।

    स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।

    स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः ।

    स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    ॐ नमस्ते गणपतये ॥१॥

    त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि ।

    त्वमेव केवलं कर्ताऽसि ।

    त्वमेव केवलं धर्ताऽसि ।

    त्वमेव केवलं हर्ताऽसि ।

    त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि ।

    त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥२॥

    ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ॥३॥

    अव त्वं माम् ।

    अव वक्तारम् ।

    अव श्रोतारम् ।

    अव दातारम् ।

    अव धातारम् ।

    अवानूचानमव शिष्यम् ।

    विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से साधक को उत्तम परिणाम मिलने लगते हैं। इस दिन आप गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ कर गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

    अव पुरस्तात् ।

    अव दक्षिणात्तात् ।

    अव पश्चात्तात् ।

    अवोत्तरात्तात् ।

    अव चोर्ध्वात्तात् ।

    अवाधरात्तात् ।

    सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात् ॥४॥

    त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः ।

    त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः ।

    त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि ।

    त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि ।

    त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥५॥

    सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते ।

    सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति ।

    सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति ।

    सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति ।

    त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।

    त्वं चत्वारि वाक् {परिमिता} पदानि ।

    त्वं गुणत्रयातीतः ।

    त्वं अवस्थात्रयातीतः ।

    त्वं देहत्रयातीतः ।

    त्वं कालत्रयातीतः ।

    त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।

    त्वं शक्तित्रयात्मकः ।

    त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।

    त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं

    रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं

    वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं

    ब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम् ॥६॥

    गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम् ।

    अनुस्वारः परतरः ।

    अर्धेन्दुलसितम् ।

    तारेण ऋद्धम् ।

    एतत्तव मनुस्वरूपम् ॥७॥

    गकारः पूर्वरूपम् ।

    अकारो मध्यरूपम् ।

    अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।

    बिन्दुरुत्तररूपम् ।

    नादस्संधानम् ।

    सग्ं‌हिता संधिः ॥८॥

    जो भी साधक विनायक चतुर्थी के दिन पर भक्तिभाव से गणेश जी की आराधना करता है और चतुर्थी का व्रत करता हैं, उसके जीवन में आ रहे सभी कष्ट धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं। इस दिन आप गणेश जी को उनका प्रिय भोग मोदक भी अर्पित कर सकते हैं, जिससे आपको उनकी असीम कृपा मिलती है।

    सैषा गणेशविद्या ।

    गणक ऋषिः ।

    निचृद्गायत्रीच्छन्दः ।

    गणपतिर्देवता ।

    ॐ गं गणपतये नमः ॥९॥

    एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि ।

    तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥१०॥

    एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम् ।

    रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् ॥

    रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ।

    रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैस्सुपूजितम् ॥

    भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ।

    आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।

    एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥११॥

    नमो व्रातपतये ।

    नमो गणपतये ।

    नमः प्रमथपतये ।

    नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय

    विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः ॥१२॥

    एतदथर्वशीर्षं योऽधीते स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।

    स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते ।

    स सर्वत्र सुखमेधते ।

    स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते ।

    सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति ।

    प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति ।

    सायं प्रातः प्रयुञ्जानो पापोऽपापो भवति ।

    सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।

    धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति ॥१३॥

    इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम् ।

    यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति ।

    सहस्रावर्तनाद्यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत् ॥१४॥

    अनेन गणपतिमभिषिञ्चति स वाग्मी भवति ।

    चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति ।

    इत्यथर्वणवाक्यम् ।

    ब्रह्माद्यावरणं विद्यान्न बिभेति कदाचनेति ॥१५॥

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    यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति ।

    यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति ।

    स मेधावान् भवति ।

    यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छितफलमवाप्नोति ।

    यस्साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते ॥१६॥

    अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति ।

    सूर्यग्रहेमहानद्यां प्रतिमासन्निधौ वा जप्त्वा सिद्धमन्त्रो भवति

    महाविघ्नात् प्रमुच्यते ।

    महादोषात् प्रमुच्यते ।

    महाप्रत्यवायात् प्रमुच्यते ।

    स सर्वविद् भवति स सर्वविद् भवति ।

    य एवं वेद ।

    इत्युपनिषत् ॥१७॥

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