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    माँ दुर्गा के छठे रूप को माँ कात्यायनी के नाम से पूजा जाता है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Fri, 07 Oct 2016 10:17 AM (IST)

    माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है ||

    मां दुर्गा की छठी शक्ति को कात्यायनी के रूप में जाना जाता है। कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनके इस स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ा। कात्यायन ऋषि ने देवी को पुत्री-रूप में पाने के लिए भगवती की कठोर तपस्या की थी। इसी स्वरूप में मां ने महिषासुर का वध किया था।

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    सिंह पर आरूढ़ मां के तेजोमय स्वरूप का ध्यान हमारे भीतर स्वाध्याय, विद्याध्ययन व तपश्चर्या का तेज प्रदान करता है और निर्मलता, उत्साह, क्रियाशीलता व उदारता जैसे गुणों को निखारने की प्रेरणा देता है। उनके हाथ में तलवार हमारी मेधा शक्ति को तीक्ष्ण रखने की प्रेरणा देती है, जिसके द्वारा हम अपने भीतर के दुर्गुणों का वध कर सकते हैं। उनके स्वरूप का ध्यान करने से हमें असफलताओं व विपत्तियों से लड़ने की शक्ति हासिल होती है। मां के चरणों में शरणागत होकर हम अपनी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए लक्ष्य की प्राप्ति कर लेते हैं।

    देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, माँ कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है। इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।

    माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है।

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    माँ कात्यायनी की पूजा विधि :

    जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

    दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं। इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है ||

    देवी कात्यायनी के मंत्र :

    चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।

    कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

    या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

    माता कात्यायनी की ध्यान :

    वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

    सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥

    स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

    वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥

    पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।

    मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

    प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।

    कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

    माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ :

    कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।

    स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥

    पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।

    सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

    परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।

    परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

    देवी कात्यायनी की कवच :

    कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।

    ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥

    कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥

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