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    Shardiya Navratri 2023: शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन पूजा के समय पढ़ें ये व्रत कथा, पूरी होगी हर मनोकामना

    धार्मिक मत है कि मां कुष्मांडा की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से मां कुष्मांडा की पूजा उपासना करते हैं। अगर आप भी मां कुष्मांडा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो विधि पूर्वक मां कुष्मांडा की पूजा करें।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 17 Oct 2023 08:19 PM (IST)
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    Shardiya Navratri 2023: शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन पूजा के समय पढ़ें ये व्रत कथा, पूरी होगी हर मनोकामना

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Shardiya Navratri 2023 Day 4: शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की विधिपूर्वक पूजा-उपसाना की जाती है। इस वर्ष नवरात्रि की चतुर्थी तिथि पर तुला संक्रांति भी है। इस शुभ अवसर पर एक साथ कई शुभ संयोग बन रहे हैं। इन योग में मां की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। संक्रांति तिथि पर दान करने का भी विधान है। अतः शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन आर्थिक स्थिति के अनुरूप दान अवश्य करें। धार्मिक मत है कि मां कुष्मांडा की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से मां कुष्मांडा की पूजा उपासना करते हैं। अगर आप भी मां कुष्मांडा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो विधि पूर्वक मां कुष्मांडा की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय व्रत कथा का पाठ अवश्य करें। इस व्रत कथा के पाठ से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।

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    व्रत कथा

    सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में त्रिदेव ने सृष्टि की रचना करने की कल्पना की। उस समय समस्त ब्रह्मांड में अंधेरा छाया हुआ था। पूरा ब्रह्मांड स्तब्ध था। इसमें न कोई राग, न कोई ध्वनि थी। केवल सन्नाटा पसरा हुआ था। उस समय त्रिदेव ने जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा से सहायता ली।

    जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा ने तत्क्षण ब्रह्मांड की रचना की। कहते हैं कि ब्रह्मांड की रचना मां कुष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से की। मां के मुख मंडल पर फैली मंद मुस्कान से समस्त ब्रह्मांड प्रकाशवान हो उठा। ब्रह्मांड की रचना अपनी मुस्कान से करने के चलते जगत जननी आदिशक्ति को मां कुष्मांडा कहा गया है। मां की महिमा निराली है।

    मां का निवास स्थान सूर्य लोक है। शास्त्रों में कहा जाता है कि मां कुष्मांडा सूर्य लोक में निवास करती हैं। ब्रह्मांड की रचना करने वाली मां कुष्मांडा के मुखमंडल पर उपस्थित तेज से सूर्य प्रकाशवान है। मां सूर्य लोक के अंदर और बाहर सभी जगहों पर निवास कर सकती हैं।

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    मां के मुख पर तेजोमय आभा प्रकट होती है। इससे समस्त जगत का कल्याण होता है। इन्होंने सूर्य समान कांतिमय तेज का आवरण कर रखा है। इस तेज को आवरण जगत जननी आदिशक्ति मां कुष्मांडा ही कर सकती हैं। मां का आह्वान निम्न मंत्र से किया जाता है।

    सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

    दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

    या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'

    शास्त्रों में निहित है कि पूजा के समय निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र के जाप से मां कुष्मांडा प्रसन्न होती हैं। उनकी कृपा से साधक के सभी रोग-शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। अतः नवरात्रि के चौथे दिन विधि विधान से मां कुष्मांडा की पूजा करें। साथ ही मां को भोग में मालपुए अर्पित करें।

    डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।