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    Shani Pradosh Vrat Katha: अगर आप कर रहे हैं शनि प्रदोष व्रत तो जरूर पढ़ें यह कथा

    Shani Pradosh Vrat Katha आज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। साथ ही आज शनिवार भी है। हर त्रयोदशी को प्रदोष व्रत किया जाता है।

    By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Sat, 01 Aug 2020 07:36 AM (IST)
    Shani Pradosh Vrat Katha: अगर आप कर रहे हैं शनि प्रदोष व्रत तो जरूर पढ़ें यह कथा

    Shani Pradosh Vrat Katha: आज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। साथ ही आज शनिवार भी है। हर त्रयोदशी को प्रदोष व्रत किया जाता है। वहीं, शनिवार होने के चलते यह शनि प्रदोष व्रत है। यह सावन का दूसरा प्रदोष व्रत है। वैसे तो प्रदोष के दिन शिव शंकर की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। लेकिन आज शनिवार होने के चलते आज शनिदेव की भी पूजा-अर्चना और व्रत किया जाता है। शनि देव की आरती की जाती है और शनि चालीसा भी पढ़ी जाती है। इसके अलावा यह व्रत शनि प्रदोष व्रत कथा के बिना अधूरा होता है। ऐसे में इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को व्रत में कथा जरूर पढ़नी चाहिए। तो चलिए पढ़ते हैं शनि प्रदोष व्रत कथा।

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    यह कथा एक सेठ-सेठानी की है। सेठ के घर में हर तरह की सुख-सुविधाएं थीं। लेकिन उसके पास कोई संतान नहीं थी। संतान सुख ना होने के चलते सेठ-सेठानी बहुत दुखी रहा करते थे। एक दिन सेठ ने तीर्थयात्रा पर जाने के लिए अपने सारा काम अपने नौकरों को सौंप दिया। उन्हें सारा काम-काज सौंप कर सेठ-सेठानी दोनों ही तीर्थयात्रा पर चले गए। जैसे ही दोनों नगर के बाहर पहुंचे तो उन्हें एक साधु नजर आए जो ध्यानमग्न थे। साधु ध्यानमग्न थे इसलिए सेठ-सेठानी ने उन्हें परेशान नहीं किया और उनका आशीर्वाद पाने के लिए चुपचाप वहीं उनके पास बैठ गए। कुछ देर बार साधु ने अपनी आंखें खोलीं तो उन्होंने देखा कि सेठ-सेठानी उनके समक्ष बैठे हुए हैं। जैसे ही साधु उन्हें देखा वैसे ही वो उनका कष्ट समझ गए। उन्होंने सेठ-सेठानी से कहा कि उनके कष्ट से वह परिचित हैं और इसका उपाय भी उन्हें बता रहे हैं।

    साधु ने सेठ और सेठानी को शनि प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि अगर वो इस व्रत को करेंगे तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होगी। उपाय बताने के साथ-साथ साधु ने सेठ-सेठानी को इस व्रत की विधि भी बताई। व्रत विधि सुनकर सेठ-सेठानी ने साधु का आशीर्वाद लियया और तीर्थयात्रा करने निकल गए। जब वो तीर्थयात्रा से लौटे तो दोनों ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया। इसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।