Kali Shatanamavali: शनिवार की संध्या आरती पर करें काली अष्टोत्तर का पाठ, सभी दुखों का होगा नाश
Kali Shatanamavali धार्मिक मान्यता है कि नियमित रूप से मां भगवती की साधना करने से जीवन में आने वाली बला टल जाती है। साथ ही घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है। अगर आप भी दुख और संताप से मुक्ति पाना चाहते हैं तो हर शनिवार की संध्या आरती के समय श्री महाकाली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करें।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Shani Dev Ki Mahima: जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की लीला अपरंपार है। मां अपने भक्तों का उद्धार करती हैं, तो दुष्टों का संहार करती हैं। मां की कृपा से साधक के जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अतः साधक विषम परिस्थिति में मां की शरण में जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि नियमित रूप से मां भगवती की साधना करने से जीवन में आने वाली बला टल जाती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। अगर आप भी दुख और संताप से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो हर शनिवार की संध्या आरती के समय श्री महाकाली अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ से सभी दुखों का नाश होता है।
मां काली अष्टोत्तर
काली कपालिनी कान्ता कामदा कामसुन्दरी ।
कालारात्रिः कालिका च कालभैरव पूजिता ॥
क्रुरुकुल्ला कामिनी च कमनीय स्वभाविनी ।
कुलीना कुलकत्रीं च कुलवर्त्म प्रकाशिनी ॥
कस्तूरिरसनीला च काम्या कामस्वरूपिणी ।
ककारवर्णनिलया कामधेनुः करालिका ॥
कुलकान्ता करालस्या कामार्त्ता च कलावती ।
कृशोदरी च कामाख्या कौमारी कुलपालिनी ॥
कुलजा कुलमन्या च कलहा कुलपूजिता ।
कामेश्वरी कामकान्ता कुञ्जरेश्वरगामिनी ॥
कामदात्री कामहर्त्री कृष्णा चैव कपर्दिनी ।
कुमुदा कृष्णदेहा च कालिन्दी कुलपूजिता ॥
काश्यापी कृष्णमाता च कुलिशाङ्गी कला तथा ।
क्रीं रूपा कुलगम्या च कमला कृष्णपूजिता ॥
कृशाङ्गी किन्नरी कत्रीं कलकण्ठी च कार्तिकी ।
कम्बुकण्ठी कौलिनी च कुमुदा कामजीविनी ॥
कलस्त्री कीर्तिका कृत्या कीर्तिश्च कुलपालिका ।
कामदेवकला कल्पलता कामाङ्गवर्द्धिनी ॥
कुन्ता च कुमुदप्रीता कदम्बकुसुमोत्सुका ।
कादम्बिनी कमलिनी कृष्णानन्दप्रदायिनी ॥
कुमारीपूजनरता कुमारीगणशोभिता ।
कुमारीरञ्जनरता कुमारीव्रतधारिणी ॥
कङ्काली कमनीया च कामशास्त्रविशारदा ।
कपालखट्वाङ्गधरा कालभैरवरूपिणी ॥
कोटरी कोटराक्षी च काशीकैलासवासिनी ।
कात्यायनी कार्यकरी काव्यशास्त्र प्रमोदिनी ॥
कामाकर्षणरूपा च कामपीठनिवासिनी ।
कङिकनी काकिनी क्रीडा कुत्सिता कलहप्रिया ॥
कुण्डगोलोद्भवप्राणा कौशिकी कीर्तिवर्द्धिनी,
कुम्भस्तनी कलाक्षा च काव्या कोकनदप्रिया ।
कान्तारवासि कान्तिश्च कठिना कृष्णवल्लभा ॥
फलश्रुति इति
ते कथितम् देवि गुह्याद् गुह्यतरम् परम् ।
प्रपठेद्य इदम् नित्यम् कालीनाम शताष्टकम् ॥
त्रिषु लोकेषु देवेशि तस्यासाध्यम् न विद्यते ।
प्रातः काले च मध्याह्ने सायाह्ने च सदा निशि ॥
यः पठेत्परया भक्त्या कालीनाम शताष्टकम् ।
कालिका तस्य गेहे च संस्थानम् कुरुते सदा ॥
शून्यागारे श्मशाने वा प्रान्तरे जलमध्यतः ।
वह्निमध्ये च संग्रामे तथा प्राणस्य संशये ॥
शताष्टकम् जपेन्मंत्री लभते क्षेममुत्तमम्,
कालीं संस्थाप्य विधिवत्श्रुत्वा नामशताष्टकैः ।
साधकः सिद्धिमाप्नोति कालिकायाः प्रसादतः ॥
डिसक्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।