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बुधवार को गणपति की पूजा के साथ उनकी ये कथायें भी रखें याद

बुधवार को गणपति की पूजा के करते समय विधि विधान का ध्‍यान रखने के साथ उनसे जुड़ी कुछ रोचक कथाओं का पाठ भी अवश्‍य करें।

By Molly SethEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 05:06 PM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 10:02 AM (IST)
बुधवार को गणपति की पूजा के साथ उनकी ये कथायें भी रखें याद
बुधवार को गणपति की पूजा के साथ उनकी ये कथायें भी रखें याद

होता है दुख दरिद्र दूर

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भगवान श्री गणेश को सभी दुखों को दूर करने वाला माना जाता है। हिंदू धर्म में प्रमुख पांच देवी-देवता यानी कि सूर्य, विष्णु, शिव,शक्ति और गणपति में भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। भौतिक, दैहिक और अध्यात्मिक कामनाओं के सिद्धि के लिए सबसे पहले उन्‍हें पूजा जाता है, इसलिए इन्हें गणाध्यक्ष और मंगलमूर्ति भी कहा जाता हैं। श्री गणेश ऋद्धि-सिद्धि के दाता और शुभ-लाभ प्रदाता हैं। वे अपनी पूजा करने वालों के बाधा, संकट, रोग तथा दरिद्रता को दूर करते हैं। शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश जी विशेष पूजा का दिन बुधवार सुनिश्‍चित किया गया है।

ऐसे करें पूजा

बुधवार को गणपति की पूजा सच्चे मन से करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, और जिनकी कुंडली में बुध ग्रह अशुभ स्थिति में है तो इस दिन पूजा करने से वह भी शांत हो जाता है। बुधवार को सुबह स्नान कर गणेशजी के मंदिर उन्हें दूर्वा की 11 या 21 गांठ अर्पित करें। गणेश मंत्र का जाप विधि-विधान से करें। उन्‍हें धूप, दीप और नैवेद्य से प्रसन्‍न करें विशेष रूप से लड्डू और मोदक श्री गणेश के प्रिय हैं। गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग वर्जित है। आइये जानें कैसे बने श्री गणेश प्रथम पूज्‍य और ऐसी ही कुछ रोचक कथायें

प्रथम पूज्‍य गणेश

कहते हैं कि एक बार देवों की सभा में यह प्रश्न उठा कि सर्वप्रथम किस देव की पूजा होनी चाहिए। सभी अपने को महान मानते थे। अंत में इस समस्या को सुलझाने के लिए देवर्षि नारद ने शिव जी से पूछने की सलाह दी, और भोलेनाथ ने कहा कि इसका फैसला एक प्रतियोगिता से होगा। इस प्रतियोगिता में सभी देवों को अपने वाहन पर पृथ्‍वी की परिक्रमा करनी थी और प्रथम आने वाले को ही प्रथम पूज्‍य बनाया जाता। सभी देव तो अपने वाहनों पर सवार हो चल गए, परंतु गणेश जी ने अपने पिता शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा की और उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। बाकी देवताओं में सबसे पहले कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर सबसे पहले पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटे और बोले कि वे स्पर्धा में विजयी हुए हैं इसलिए पृथ्वी पर प्रथम पूजा पाने के अधिकारी हैं। इस पर शिव जी ने कहा कि विनायक ने तुमसे भी पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा पूरी की है और वही प्रथम पूजा का अधिकारी होगा। कार्तिकेय खिन्न होकर पूछा यह कैसे संभव है। तब शिव जी ने स्‍पष्‍ट किया कि गणेश अपने माता-पिता की परिक्रमा करके यह प्रमाणित कर चुका है कि माता-पिता ब्रह्मांड से भी बढ़कर हैं। इसके बाद सभी देवों ने भी एक स्वर में स्वीकार कर लिया कि गणेश जी ही पृथ्वी पर प्रथम पूजन के अधिकारी हैं। तभी से गणपति का पूजन सर्वप्रथम किया जाता है।  

गजवदन बनने की कहानी

ऐसी ही एक कथा के अनुसार एक बार शिव जी अपने गणों के साथ भ्रमण के लिए गए थे तो पार्वती जी स्नान करने के लिए तैयार हो गईं। उन्‍होंने अपने शरीर के मैल से एक प्रतिमा बनाई और उसमें प्राण प्रतिष्ठा करके द्वार के सामने पहरे पर बिठा कर आदेश दिया कि किसी को भी अंदर आने ना आने दे। वह बालक पहरा देने लगा, तभी शंकर जी आ पहुंचे और अंदर जाने लगे तो बालक ने उनको रोक दिया। जिससे रुष्‍ट होकर शिव जी ने उसका सिर काट डाला। स्नान से लौटकर पार्वती ने जब ये देखा तो कहा कि ये आपने यह क्या कर डाला, यह तो हमारा पुत्र था। तब शिव जी बहुत दुखी हुए और गणों को बुलाकर आदेश दिया कि कोई भी प्राणी जो उत्तर दिशा में सिर करके सो रहा हो तो उसका सिर काटकर ले आओ। गणों को ऐसा एक हाथी मिला तो वे उसी का सिर ले आये और शिव ने उस बालक के धड़ पर हाथी का सिर चिपकाकर उसमें प्राण फूंक दिए। यही बालक गजवदन यानि गणेश के नाम से लोकप्रिय हुआ।


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