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    Annapurna Chalisa: सोमवार को पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ, अन्न-धन से भर जाएंगे भंडार

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 02 Jun 2024 07:14 PM (IST)

    सोमवार के दिन शिव परिवार की विधि-विधान से पूजा की जाती है। साथ ही साधक इच्छित वर पाने के लिए सोमवारी व्रत भी रखते हैं। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही घर में सुख समृद्धि एवं खुशहाली आती है। अतः सोमवार को शिव जी संग मां अन्नपूर्णा की भी पूजा-अर्चना की जाती है।

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    Annapurna Chalisa: सोमवार को पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Annapurna Chalisa: सोमवार का दिन देवों के देव महादेव और मां पार्वती को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की श्रद्धा भाव से पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही सोमवारी का व्रत भी रखा जाता है। सोमवारी व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। साथ ही आय और सौभाग्य में भी मनोवांछित वृद्धि होती है। शास्त्रों में निहित है कि सोमवार के दिन मां अन्नपूर्णा की उपासना करने से अन्न और धन के भंडार भर जाते हैं। अतः सोमवार के दिन भगवान शिव संग मां अन्नपूर्णा की भी पूजा-अर्चना की जाती है। अगर आप भी मां अन्नपूर्णा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो सोमवार के दिन विधि-विधान से भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस चालीसा का पाठ अवश्य करें।

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    अन्नपूर्णा चालीसा

    दोहा

    विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।

    अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।

    चौपाई

    नित्य आनंद करिणी माता,

    वर अरु अभय भाव प्रख्याता ।

    जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी,

    अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ।

    श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि,

    संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ।

    काशी पुराधीश्वरी माता,

    माहेश्वरी सकल जग त्राता ।

    वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी,

    विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ।

    पतिदेवता सुतीत शिरोमणि,

    पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ।

    पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा,

    योग अग्नि तब बदन जरावा ।

    देह तजत शिव चरण सनेहू,

    राखेहु जात हिमगिरि गेहू ।

    प्रकटी गिरिजा नाम धरायो,

    अति आनंद भवन मँह छायो ।

    नारद ने तब तोहिं भरमायहु,

    ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ।

    ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये,

    देवराज आदिक कहि गाये ।

    सब देवन को सुजस बखानी,

    मति पलटन की मन मँह ठानी ।

    अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या,

    कीन्ही सिद्ध हिमाचल कन्या ।

    निज कौ तब नारद घबराये,

    तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ।

    करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ,

    संत बचन तुम सत्य परेखेहु ।

    गगनगिरा सुनि टरी न टारे,

    ब्रह्मां तब तुव पास पधारे ।

    कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा,

    देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ।

    तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी,

    कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ।

    अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों,

    है सौगंध नहीं छल तोसों ।

    करत वेद विद ब्रहमा जानहु,

    वचन मोर यह सांचा मानहु ।

    तजि संकोच कहहु निज इच्छा,

    देहौं मैं मनमानी भिक्षा ।

    सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी,

    मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ।

    बोली तुम का कहहु विधाता,

    तुम तो जगके स्रष्टाधाता ।

    मम कामना गुप्त नहिं तोंसों,

    कहवावा चाहहु का मोंसों ।

    दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा,

    शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ।

    सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये,

    कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ।

    तब गिरिजा शंकर तव भयऊ,

    फल कामना संशयो गयऊ ।

    चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा,

    तब आनन महँ करत निवासा ।

    माला पुस्तक अंकुश सोहै,

    कर मँह अपर पाश मन मोहै ।

    अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे,

    अज अनवघ अनंत पूर्णे ।

    कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ,

    भव विभूति आनंद भरी माँ ।

    कमल विलोचन विलसित भाले,

    देवि कालिके चण्डि कराले ।

    तुम कैलास मांहि है गिरिजा,

    विलसी आनंद साथ सिंधुजा ।

    स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी,

    मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ।

    विलसी सब मँह सर्व सरुपा,

    सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ।

    जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा

    फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ।

    प्रात समय जो जन मन लायो,

    पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ।

    स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत,

    परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ।

    राज विमुख को राज दिवावै,

    जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ।

    पाठ महा मुद मंगल दाता,

    भक्त मनोवांछित निधि पाता ।

    ॥ दोहा ॥

    जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावैंगे माथ ।

    तिनके कारज सिद्ध सब साखी काशी नाथ ॥

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