Puja Path Niyam: क्या आपको पता है आरती और पूजा के बीच का अंतर, जानें आरती उतारने का सही तरीका
पूजा के दौरान आरती करने का विशेष महत्व है। कुछ लोग रोज पूजा करते हैं और कुछ लोग कभी-कभी। कई लोग पूजा और आरती को एक ही समझ बैठते हैं। आज हम आपको आरती और पूजा के बीच का अंतर बताने जा रहे हैं।

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Puja Path Niyam: हिंदू धर्म में जितना महत्व पूजा का है उतना ही महत्व आरती का भी बताया गया है। पूजा-पाठ के द्वारा लोग ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। नियमित रूप से पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और साथ ही सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
क्या है पूजा का अर्थ
पूजा का अर्थ है भगवान के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करना। इससे व्यक्ति ईश्वर के लिए उसके मन में जो सम्मान है उसे व्यक्त करता है। पूजा के दौरान प्रत्येक देवी-देवता को उनकी पसंद के अनुसार कई तरह की वस्तुएं अर्पित की जाती हैं जैसे फूल, फल, पत्तियां, चावल, मिठाई आदि। विशेष अवसरों जैसे दीपावली, एकादशी या कृष्ण जन्माष्टमी आदि पर विशेष ढंग से पूजा का विधान है। प्रत्येक देवी-देवता के लिए हफ्ते के अलग-अलग दिन भी निर्धारित हैं। उदाहरण के तौर पर जिस प्रकार सोमवार का दिन शिव जी को, मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है। उसी तरह शनिवार के दिन शनि देव की पूजा की जाती है।
क्यों जरूरी है पूजा
पूजा-पाठ मन में पवित्र भावों को जन्म देने के लिए की जाती है। क्योंकि पवित्र भावों से मन पवित्र होता है। जो आगे चलकर जीवन को बेहतर बनाता है। पूजा करने से भगवान की कृपा हमेशा भक्तों पर बनी रहती है, इतना ही नहीं, इससे लोगों का मन में शांति बनी रहती है। कहते हैं कि जो भी भक्त, सच्चे दिल से पूजा करते हैं, भगवान उन पर कोई संकट या कष्ट नहीं आने देते। पूजा करने से घर का वातावरण शुद्ध और सकारात्मक रहता है।
क्या है आरती का महत्व
आरती का अर्थ है भगवान को याद करना, उनके प्रति आदर का भाव दिखाना, ईश्वर का स्मरण करना और उनका गुणगान करना। सभी लोग अपने आराध्य की पूजा विशेष ढंग से करते हैं। ऐसी मान्यता है कि हमेशा पूजा करने के बाद आरती जरूर करनी चाहिए, अन्यथा पूजा अधूरी मानी जाती है। बिना आरती के की गई पूजा भगवान को स्वीकार्य नहीं होती है। शास्त्रों में भी इस बात का जिक्र है कि पूजा की पूर्णता आरती से ही है। आरती को एक हिंदू अनुष्ठान माना जाता है जो एक भगवान के प्रति प्रेम और कृतज्ञता व्यक्त करने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार पूजा समाप्त करने के बाद आरती करने से पूजा का पूर्ण फल मिलता है। आरती व्यक्ति के आत्म बल को बढ़ाने में मदद करती है। परिवार के साथ मिलकर की गई आरती लोगों के बीच सामंजस्य को बढ़ाती है।
कैसे करें आरती
आरती एक बाती या कपूर से निकलने वाली एक छोटी सी लौ को कहा जाता है, जिसे एक प्लेट पर दीपक के रूप में रखा जाता है। इसे पूजा के बाद किसी भी भगवान के सामने घड़ी की दिशा में गोलाकार गति में घुमाया जाता है। भगवान की आरती सबसे पहले भगवान के चरणों से शुरू करनी चाहिए। सबसे पहले आरती उतारते समय चार बार दीपक को सीधी दिशा में घुमाएं। उसके बाद ईश्वर की नाभि के पास दो बार आरती उतारें, तत्पश्चात सात बार भगवान के मुख की आरती उतारें। आरती में शंख और घंटी बजाने का विशेष महत्व है। इसकी ध्वनि से चारों तरफ का वातावरण स्वच्छ हो जाता है।
डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।