परशुराम जयंति
कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे।
कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कथानक मिलता है कि कैलाश स्थित भगवान शंकर के अन्तपुर में प्रवेश करते समय गणेश जी द्वारा रोके जाने पर परशुराम ने बलपूर्वक अन्दर जाने की चेष्ठा की। तब गणपति ने उन्हें स्तम्भित कर अपनी सूंड में लपेटकर समस्त लोकों का भ्रमण कराते हुए गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन कराके भूतल पर पटक दिया। चेतनावस्था में आने पर कुपित परशुरामजी द्वारा किए गए फरसे के प्रहार से गणेश जी का एक दांत टूट गया, जिससे वे एकदंत कहलाए।
रामायण काल- परशुरामजी ने त्रेतायुग में रामावतार के समय शिवजी का धनुष भंग होने पर आकाश-मार्ग द्वारा मिथिलापुरी पहुंच कर प्रथम तो स्वयं को विश्व-विदित क्षत्रिय कुल द्रोही बताते हुए बहुत भांति तिन्ह आंख दिखाए। क्रोध में उन्होंने भगवान श्री राम को बहुत कुछ कह दिया। लेकिन अपनी शक्ति का संशय मिटते ही वैष्णव धनुष श्रीराम को सौंप दिया और क्षमा याचना करते हुए अनुचित शब्द कहने के लिए क्षमा मांगते हुए वन को लौट गए।
महाभारत काल-
भीष्म द्वारा स्वीकार न किए जाने के कारण अंबा प्रतिशोध वश सहायता मांगने के लिए परशुराम के पास आई। तब सहायता का आश्वासन देते हुए उन्होंने भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा। उन दोनों के बीच 23 दिन तक घमासान युद्ध चला। किन्तु अपने पिता द्वारा इच्छा मृत्यु के वरदान स्वरुप परशुराम उन्हें हरा न सके। परशुराम अपने जीवन भर की कमाई ब्राह्मणों को दान कर रहे थे, तब द्रोणाचार्य उनके पास पहुंचे। किन्तु दुर्भाग्यवश वे तब तक सब कुछ दान कर चुके थे। तब परशुराम ने दयाभाव से द्रोणाचार्य से कोई भी अस्त्र-शस्त्र चुनने के लिए कहा। तब चतुर द्रोणाचार्य ने कहा कि मैं आपके सभी अस्त्र शस्त्र उनके मन्त्रों सहित चाहता हूं ताकि जब भी उनकी आवश्यकता हो, प्रयोग किया जा सके। इससे द्रोणाचार्य शस्त्र विद्या में निपुण हो गये। परशुराम कर्ण के भी गुरु थे। उन्होंने कर्ण को भी विभिन्न प्रकार कि अस्त्रों की शिक्षा दी थी और ब्रह्मास्त्र चलाना भी सिखाया था। लेकिन कर्ण एक सूत पुत्र था, और जानते थे कि परशुराम केवल ब्राह्मणों को ही विधा दान देते हैं, लेकिन उसने छल से परशुराम से विद्या ले ली। परशुराम ने उसे बहुत सी विद्याएं सिखाईं। एक दिन जब परशुराम एक वृक्ष के नीचे कर्ण की गोद में सिर रख सो रहे थे, तब एक भौंरा आकर कर्ण के पैर पर काटने लगा, अपने गुरुजी की नींद में कोई अवरोध न आए इसलिए कर्ण भौंरे को सहता रहा। वह कर्ण के पैर को बुरी तरह काटे जा रहा था, उसके काटने से कर्ण का खून बहने लगा। वो खून बहता हुआ परशुराम के पैरों तक जा पहुंचा। परशुराम की नींद खुल गई और वे इस खून को तुरन्त पहचान गए कि यह किसी क्षत्रिय का ही हो सकता है। इससे क्षुब्ध परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि उनका सिखाया हुआ सारा ज्ञान उसके किसी काम नहीं आएगा, जब उसे उसकी सर्वाधिक आवश्यकता होगी। इसीलिए जब कुरुक्षेत्र के युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने-सामने होते हैं तो अर्जुन उसे मार देते हैं क्योंकि उस समय कर्ण ब्रह्मस्त्र चलाने का ज्ञान ध्यान में ही नहीं रहा।
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