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Navratri 2019 Meaning of NavDurga: मां दुर्गा के 9 स्वरूपों का क्या है अर्थ, जानें इनका महत्व

Navratri 2019 Meaning of NavDurga NavDurga ka arth या देवी सर्वभूतेषु..नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की बड़ी महत्ता है।

By kartikey.tiwariEdited By: Published: Tue, 24 Sep 2019 12:00 PM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 07:00 PM (IST)
Navratri 2019 Meaning of NavDurga: मां दुर्गा के 9 स्वरूपों का क्या है अर्थ, जानें इनका महत्व
Navratri 2019 Meaning of NavDurga: मां दुर्गा के 9 स्वरूपों का क्या है अर्थ, जानें इनका महत्व

Navratri 2019 Meaning of NavDurga: दुर्गा शक्ति की प्रतीक हैं, जो सभी प्रकार की बुरी शक्तियों और बुरे विचारों से हमारी रक्षा करती हैं। दुर्गा शक्ति की उपस्थिति में नकारात्मक विचार और ताकत के अस्तित्व मिट जाते हैं। देवी को एक शेर या बाघ पर सवार दिखाया जाता है। यह संकेत है साहस और वीरता का, जो दुर्गा शक्ति का मूल तत्व है। नवदुर्गा यानी दुर्गा शक्ति के नौ रूप। जब आप जीवन में बाधाओं या बौद्धिक अवरोधों का सामना करते हैं, तो देवी के नौ रूप की विशेषताओं के स्मरण मात्र से सहायता प्राप्त होती है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए अधिक मददगार है, जो अपनी क्षमताओं पर संदेह करते हैं या फिर हमेशा चिंताग्रस्त रहते हैं। ऐसे लोग, जो ईष्र्या-द्वेष जैसे नकारात्मक भावों से भरे रहते हैं।

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1. शक्ति का प्रवाह हैं शैलपुत्री

देवी के नामों के उच्चारण से हमारी चेतना जाग्रत होती है और मन केंद्रित होकर निर्भय और शांत होता है। शक्ति का प्रवाह (शैलपुत्री) नवदुर्गा में पहली देवी हैं शैलपुत्री। शैल यानी पत्थर। इस रूप की आराधना से मन पत्थर के समान मजबूत होता है। इससे प्रतिबद्धता आती है। जब भी आपका मन अस्थिर होता है, शैलपुत्री उसे केंद्रित और प्रतिबद्ध करने में सहायता करती हैं। शैल शिखर को भी कहा जाता है। शैलपुत्री पर्वत शिखर की बेटी हैं।

श्री श्री रविशंकर के अनुसार, जब आप किसी भी अनुभव या गहन अनुभूति के शिखर पर पहुंच जाते हैं, तो आपको एक दिव्य चेतना की अनुभूति होती है। जब तक यह शिखर तक नहीं पहुंचती आप इसे समझ नहीं पाते, क्योंकि इसका जन्म उस शिखर से ही होता है। जब आप गहन अनुभूति में होते हैं, तब शक्ति के प्रवाह को अनुभव कर सकते हैं। उसी समय आप पाएंगे कि आप उस भाव से बाहर निकल रहे हैं। यही शैलपुत्री का अदृष्ट अभिप्राय है।

2. ब्रह्मचारिणी: जानें विस्तृत प्रकृति को

ब्रह्मचर्य से शक्ति आती है। ब्रह्म का अर्थ है-अनंत और चर्य का अर्थ है चलना। यहां ब्रह्मचर्य का अर्थ हुआ अनंत में चलना। स्वयं को मात्र शरीर नहीं मानना चाहिए। हम अपनी विस्तृत प्रकृति को जानें और स्वयं को एक प्रकाश पुंज मानें। संसार में आप कुछ इस तरह चलें जैसे कि आप ही ब्रह्मांड हों। आप जितना खुश होंगे आपको अपनी काया का उतना ही कम एहसास होगा। जितना आप अनंत चेतना में होंगे, उतनी ही कम चिंता और अपनी भौतिक काया के भार का अनुभव करेंगे। यही है ब्रह्मचर्य का मर्म।

देवी की विशेषताओं का आह्वान करने के लिए हमारी चेतना अनंत में विस्तार पाती है और अनंत में विचरण करने लगती है। यही है हमारी वास्तविक प्रकृति। उस स्थिति में आप बहुत जोश और साहस महसूस करेंगे। शक्ति के विशुद्ध रूप को दर्शाते हुए देवी को कुमारी के रूप में दिखाया गया है, जो स्वतंत्र व नवीन है और जो किसी के नियंत्रण में नहीं है।

3. चंद्रघंटा: विचारों और ध्वनियों की समग्रता

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। यह देवी घंटे के आकार का चंद्रमा धारण करती हैं। चंद्रमा का संबंध बुद्धि से है और घंटा सतर्कता का प्रतीक है। घंटे की ध्वनि दिमाग को वास्तविकता में ले आती है। ध्वनि से नि:शब्दता, नि:शब्दता से ध्वनि और फिर ध्वनि से नि:शब्दता की ध्वनि जब मस्तिष्क तक आती है, तब अंतत: वह विलीन हो जाती है और नि:स्तब्ध हो जाती है। जिस प्रकार चंद्रमा घटता-बढ़ता है, उसी प्रकार मस्तिष्क भी अस्थिर रहता है। चेतना संघटित होने से मस्तिष्क एक स्थान पर केंद्रित हो जाता है और इससे ऊर्जा में वृद्धि होती है। मस्तिष्क सतर्कता के साथ हमारे नियंत्रण में होता है। जब सतर्कता की गुणवत्ता और दृढ़ता की वृद्धि होती है, तो मस्तिष्क आभूषण के समान हो जाता है।

मस्तिष्क दिव्य मां का स्वरूप और उनकी अभिव्यक्ति भी है। वह यदि शांति और संवेदना में उपस्थित है, तो दुख, कष्ट, भूख आदि में भी उसका साथ बना रहेगा। इसका सार यही है कि चाहे सुख मिले या दुख, हमें हर परिस्थिति को समान रूप से देखना चाहिए। समग्रता के साथ सभी विचारों, भावनाओं और ध्वनियों को एक नाद में समाहित करें, जैसे घंटे की ध्वनि होती है। यही चंद्रघंटा का अभिप्राय है।

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4. कुष्मांडा: ब्रह्मांड की सृजनात्मक शक्ति की प्रतीक

कुष्मांडा अर्थात कुम्हड़ा अर्थात सीताफल, जो शक्ति से भरपूर सब्जी है। एक सीताफल में अनेक बीज होते हैं, जिनसे और भी कई सीताफ ल उत्पन्न हो सकते हैं। यह ब्रह्मांड की सृजनात्मक शक्ति और शाश्वत प्रकृति का प्रतीक है। कुष्मांडा के रूप में देवी के भीतर समस्त सृजन समाया हुआ है। यह हमें उच्चतम प्राण प्रदान करती हैं, जो वृत्त के समान पूर्ण है।

प्रकट और अप्रकट दोनों ही एक बहुत बड़ी गेंद या सीताफल के समान हैं, जो बताते हैं कि आपके पास यहां सभी प्रकार की विभिन्नताएं हैं। सूक्ष्मतम से विशाल तक। कुष्मांडा में कु यानी छोटा और ष् यानी ऊर्जा। यह ब्रह्मांड ऊर्जा से व्याप्त है सूक्ष्मतम से विशाल तक। एक छोटा-सा बीज पूरा फल बन जाता है और फिर फल बीज में बदल जाता है। हमारे भीतर की शक्ति की एक विशेषता है। यह सूक्ष्म से सूक्ष्मतम और विशाल से विशालतम हो जाती है। दिव्य मां हमारे भीतर प्राण रूप में हैं। हमें सृष्टि तथा अपने जीवन में बहुलता और पूर्णता का अनुभव करना चाहिए।

5. स्कंदमाता: ज्ञान और क्रियाशीलता का साथ

स्कंद या प्रभु सुब्रमण्यम की मां स्कंदमाता कहलाती हैं। गोद में बालक स्कंद को लिए माता को शेर पर सवार दर्शाया जाता है। इनका यह रूप साहस और करुणा का प्रतीक है। स्कंद अर्थात कुशल। ज्ञान की मदद से ही कुशल कार्य किए जा सकते हैं। श्री श्री रविशंकर बताते हैं कि कई बार हमारे पास ज्ञान तो होता है, लेकिन उसका कोई उद्देश्य नहीं होता है। अपने कार्य से अर्जित किए गए ज्ञान का एक उद्देश्य होता है। जब आप मेडिकल की पढ़ाई करते हैं, तो आप उसका इस्तेमाल रोज कर सकते हैं। जब आप टीवी ठीक करना सीखते हैं, तो आप उस शिक्षा को तब प्रयोग में लाते हैं, जब टीवी खराब हो जाता है। यह प्रयोगात्मक ज्ञान या दक्षता है।

स्कंद भी हमारे जीवन में ज्ञान और क्रियाशीलता के एकसाथ आने के भाव को दर्शाता है। यदि जीवन में कठिन परिस्थिति आती है, तो क्या करना चाहिए? समस्या के समाधान के लिए हमें अपने ज्ञान का इस्तेमाल करना चाहिए। जब आप बुद्धिमत्ता से कार्य करते हैं, तब स्कंद तत्व प्रकट होता है। स्कंदमाता कौशल, करुणा और साहस की प्रतीक हैं।

6. कात्यायनी: अन्याय और अज्ञानता को मिटाने का संदेश

देवी मां का यह रूप देवताओं के क्रोध से उत्पन्न हुआ। सृष्टि में दिव्य और दानवी शक्तियां व्याप्त हैं। इसी तरह क्रोध भी सकारात्मक और नकारात्मक हो सकता है। क्रोध को अवगुण न मानें। क्रोध का भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। अच्छा क्रोध बुद्धिमत्ता से संबंधित है और बुरा क्रोध भावनाओं और स्वार्थ से। अच्छा क्रोध व्यापक दृष्टिबोध से आता है। यह अन्याय और अज्ञानता को मिटाने का संदेश देता है। अन्याय और नकारात्मकता को मिटाने के उद्देश्य से जो क्रोध उत्पन्न होता है, वह देवी कात्यायिनी का प्रतीक है।

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7. कालरात्रि: ज्ञान और तटस्थता का संदेश

काल अर्थात समय। सृष्टि में घटित होने वाली सभी घटनाओं का साक्षी है समय। रात्रि अर्थात गहन विश्राम या पूर्ण विश्राम। तन, मन और आत्मा के स्तर पर आराम। बिना विश्राम पाए आप दीप्तिमान कैसे होंगे? कालरात्रि गहनतम विश्राम के उस स्तर का प्रतीक है, जिससे आप जोश पा सकें। ये देवी आपको ज्ञान और तटस्थता प्रदान करती हैं।

8. महागौरी: परमानंद और मोक्ष प्रदाता

देवी के इस रूप में ज्ञान, गमन, प्राप्ति और मोक्ष का संदेश छिपा है। महागौरी हमें विवेक प्रदान करती हैं, जो जीवन सुधा समान है। निष्कपटता से शुद्धता प्रकट होती है। महागौरी प्रतिभा और निष्कपटता का मिश्रण हैं। ये परमानंद और मोक्ष प्रदान करती हैं।

9. माता सिद्धिदात्री: सभी सिद्धियों की दाता

मां दुर्गा के नौवा स्वरूप माता सिद्धिदात्री का है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। इस पूरे संसार में उसके लिए कुछ अप्राप्य नहीं होता है। उसमें इस ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त कर लेने की क्षमता आ जाती है।

(प्रस्तुति: भानुमति देवी)


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