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    Mokshada Ekadashi 2025: सभी पापों से चाहते हैं मुक्ति, तो मोक्षदा एकादशी के दिन करें गंगा चालीसा का पाठ

    Updated: Thu, 27 Nov 2025 05:00 PM (IST)

    मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2025) के रूप में मनाई जाती है। इस बार 01 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी मनाई जाएगी। इस दिन व्रत और श्रीहरि की पूजा करना फलदायी साबित होता है। मंदिर में विशेष चीजों का दान भी जरूर करना चाहिए। इससे साधक को व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

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    एकादशी के दिन गंगा चालीसा का पाठ करने से मिलेंगे अद्भुत लाभ (Image Source: AI-Generated)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मार्गशीर्ष माह में मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2025) व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। यह तिथि श्रीहरि की कृपा प्राप्त करने के लिए शुभ मानी जाती है।
    अगर संभव हो तो इस दिन पवित्र नदी में स्नान करें और दीपदान करने के बाद गंगा चालीसा (Ganga Chalisa) का पाठ करें। धार्मिक मान्यता है कि इस उपाय को करने से साधक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। आइए पढ़ते हैं गंगा चालीसा।

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    मोक्षदा एकादशी 2025 डेट और शुभ मुहूर्त (Mokshada Ekadashi 2025 Date and Shubh Muhurat)


    वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार 01 दिसंबर (Kab Hai Mokshada Ekadashi 2025) को मोक्षदा एकादशी व्रत किया जाएगा।
    मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत- 30 नवंबर को रात 09 बजकर 29 मिनट पर
    मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का समापन- 01 दिसंबर को रात 07 बजकर 01 मिनट पर

    गंगा चालीसा के पाठ से मिलते हैं ये अद्भुत लाभ (Ganga Chalisa Benefits)

    • गंगा चालीसा का पाठ सच्चे मन से करने से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।
    • रोजाना पाठ करने से मन को शांति मिलती है।
    • आध्यात्मिक विकास होता है।
    • आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
    • जीवन में सफलता मिलती है।
    • मां गंगा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

    गंगा चालीसा (Ganga Chalisa Lyrics)

    ॥ दोहा ॥

    जय जय जय जग पावनी,जयति देवसरि गंग।

    जय शिव जटा निवासिनी,अनुपम तुंग तरंग॥

    ॥ चौपाई ॥

    जय जय जननी हराना अघखानी।आनंद करनी गंगा महारानी॥

    जय भगीरथी सुरसरि माता।कलिमल मूल डालिनी विख्याता॥

    जय जय जहानु सुता अघ हनानी।भीष्म की माता जगा जननी॥

    धवल कमल दल मम तनु सजे।लखी शत शरद चन्द्र छवि लजाई॥

    वहां मकर विमल शुची सोहें।अमिया कलश कर लखी मन मोहें॥

    जदिता रत्ना कंचन आभूषण।हिय मणि हर, हरानितम दूषण॥

    जग पावनी त्रय ताप नासवनी।तरल तरंग तुंग मन भावनी॥

    जो गणपति अति पूज्य प्रधान।इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना॥

    ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी।श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥

    साथी सहस्र सागर सुत तरयो।गंगा सागर तीरथ धरयो॥

    अगम तरंग उठ्यो मन भवन।लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन॥

    तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता।धरयो मातु पुनि काशी करवत॥

    धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी।तरनी अमिता पितु पड़ पिरही॥

    भागीरथी ताप कियो उपारा।दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥

    जब जग जननी चल्यो हहराई।शम्भु जाता महं रह्यो समाई॥

    वर्षा पर्यंत गंगा महारानी।रहीं शम्भू के जाता भुलानी॥

    पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो।तब इक बूंद जटा से पायो॥

    ताते मातु भें त्रय धारा।मृत्यु लोक, नाभा, अरु पातारा॥

    गईं पाताल प्रभावती नामा।मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥

    मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी।कलिमल हरनी अगम जग पावनि॥

    धनि मइया तब महिमा भारी।धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥

    मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।धनि सुर सरित सकल भयनासिनी॥

    पन करत निर्मल गंगा जल।पावत मन इच्छित अनंत फल॥

    पुरव जन्म पुण्य जब जागत।तबहीं ध्यान गंगा महं लागत॥

    जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥

    महा पतित जिन कहू न तारे।तिन तारे इक नाम तिहारे॥

    शत योजन हूं से जो ध्यावहिं।निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं॥

    नाम भजत अगणित अघ नाशै।विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे॥

    जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।धर्मं मूल गंगाजल पाना॥

    तब गुन गुणन करत दुख भाजत।गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥

    गंगहि नेम सहित नित ध्यावत।दुर्जनहूं सज्जन पद पावत॥

    उद्दिहिन विद्या बल पावै।रोगी रोग मुक्त हवे जावै॥

    गंगा गंगा जो नर कहहीं।भूखा नंगा कभुहुह न रहहि॥

    निकसत ही मुख गंगा माई।श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥

    महं अघिन अधमन कहं तारे।भए नरका के बंद किवारें॥

    जो नर जपी गंग शत नामा।सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥

    सब सुख भोग परम पद पावहीं।आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥

    धनि मइया सुरसरि सुख दैनि।धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥

    ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।सुन्दरदास गंगा कर दासा॥

    जो यह पढ़े गंगा चालीसा।मिली भक्ति अविरल वागीसा॥

    ॥ दोहा ॥

    नित नए सुख सम्पति लहैं,धरें गंगा का ध्यान।

    अंत समाई सुर पुर बसल,सदर बैठी विमान॥

    संवत भुत नभ्दिशी,राम जन्म दिन चैत्र।

    पूरण चालीसा किया,हरी भक्तन हित नेत्र॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।