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    Masik Durgashtami 2025: मासिक दुर्गाष्टमी पर करें इस स्तोत्र का पाठ, सभी कष्टों का होगा नाश

    पंचांग के अनुसार हर माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक दुर्गाष्टमी (Masik Durgashtami 2025) मनाई जाती है। इस दिन माता रानी के निमित्त व्रत करने और पूजा-अर्चना करने से साधक के जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। ऐसे में आप मासिक दुर्गाष्टमी पर विशेष लाभ के लिए मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Sat, 04 Jan 2025 08:24 AM (IST)
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    Masik Durgashtami 2025 करें महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा-अर्चना से जीवन के भय व चिंताएं दूर होती हैं। ऐसे में मासिक दुर्गाष्टमी के शुभ अवसर पर मां दुर्गा की विशेष रूप से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इससे आपको जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता देखने को मिलती है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं देवी मां की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र।

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    मासिक दुर्गाष्टमी तिथि (Masik Durgashtami 2025 Tithi)

    पौष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 06 जनवरी 2025 को शाम 06 बजकर 23 मिनट पर हो रही है। वहीं, इस तिथि का समापन 07 जनवरी को दोपहर 04 बजकर 26 मिनट पर होगा। मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा मध्य रात्रि में की जात है। ऐसे में मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत मंगलवार, 07 जनवरी को किया जाएगा।

    महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र

    अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

    गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।

    भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥

    सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते

    त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते

    दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥

    अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते

    शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।

    मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥

    अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते

    रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।

    निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥

    धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मासिक दुर्गाष्टमी की पूजा से जातक के पारिवारिक जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत करने वाले साधक को करियर में उन्नति, धन में समृद्धि और जीवन में सफलता मिलती है।

    अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते

    चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।

    दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥

    अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे

    त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।

    दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

    अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

    समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।

    शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

    धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके

    कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।

    कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

    सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते

    कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।

    धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

    जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते

    झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।

    नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

    अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते

    श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।

    सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

    मासिक दुर्गाष्टमी के दिन आप मां दुर्गा की पूजा-अर्चना द्वारा उनकी विशेष कृपा के पात्र बन सकते हैं। पूजा के दौरान महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभकारी माना जाता है। इससे मां दुर्गा आपसे प्रसन्न होती हैं और जीवन के सभी कष्ट दूर करती हैं।

    सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते

    विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।

    शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

    अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते

    त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।

    अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

    कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते

    सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।

    अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

    करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते

    मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।

    निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

    कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे

    प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे

    जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

    विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते

    कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।

    सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

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    पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

    अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।

    तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

    कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

    भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।

    तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

    मां दुर्गा अपने भक्तों को सुरक्षा प्रदान करती हैं और जीवन के सभी कष्ट हर लेती हैं। मासिक दुर्गाष्टमी, मां दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए एक उत्तम दिन माना गया है। ऐसे में इस दिन विशेष रूप से देवी मां की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

    तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते

    किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।

    मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

    अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

    अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।

    यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥

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