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    Mahalakshmi Vrat 2019: आज से प्रारंभ हो रहा है 16 दिनों का महालक्ष्मी व्रत, जानें व्रत, पूजा विधि और महत्व

    By kartikey.tiwariEdited By:
    Updated: Fri, 06 Sep 2019 09:32 AM (IST)

    Mahalakshmi Vrat 2019 भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ होता है जो 16 दिनों तक चलता है। महालक्ष्मी व्रत आज से प्रारंभ हो रहा है।

    Mahalakshmi Vrat 2019: आज से प्रारंभ हो रहा है 16 दिनों का महालक्ष्मी व्रत, जानें व्रत, पूजा विधि और महत्व

    Mahalakshmi Vrat 2019: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से महालक्ष्मी व्रत का प्रारंभ होता है, जो 16 दिनों तक चलता है। महालक्ष्मी व्रत आज से प्रारंभ हो रहा है, जो 21 सितंबर तक चलेगा। आज अच्छा संयोग है कि महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ के दिन राधाष्टमी भी मनाई जा रही है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से आरंभ होकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक होता है। 16 दिनों तक महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे धन-दौलत, वैभव आदि प्राप्त होता है।

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    महालक्ष्मी व्रत का महत्व

    महालक्ष्मी का व्रत करने से दरिद्रता दूर होती है। भक्तों का घर धन-दौलत और वैभव से परिपूर्ण हो जाता है। माता लक्ष्मी धन और वैभव की देवी हैं, विधि विधान से 16 दिन या फिर 3 दिन व्रत करने से वह प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों के समस्त समस्याओं का निराकरण कर देती हैं। उनकी पूजा करने से भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं क्योंकि वह उनकी अर्धांगिनी हैं। इससे भक्तों पर भगवान श्रीहरि की कृपा भी बनी रहती है।

    16 दिन या 3 दिन का व्रत

    महालक्ष्मी का व्रत 16 दिनों का होता है। यदि कोई भी व्यक्ति किसी कारण से 16 दिनों का व्रत नहीं कर सकता है तो वह 3 महत्वपूर्ण तिथियों को व्रत करके महालक्ष्मी व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकता है। व्रत के तीन दिनों के उपवास के लिए महालक्ष्मी व्रत का पहला दिन, आठवां दिन एवं अंतिम सोलहवां दिन।

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    महालक्ष्मी व्रत एवं पूजा विधि

    इस व्रत में भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से लेकर अश्विन कृष्ण अष्टमी तक प्रतिदिन 16 अंजलि कुल्ले करके प्रातः स्नान आदि नित्य कर्म करना चाहिए। इसके पश्चात माता लक्ष्मी की प्रतिमा का स्थापना पूजा घर में करें।

    उसके समीप 16 सूत्र के डोरे में 16 गांठ लगाएं। फिर उनका 'लक्ष्म्यै नमः' मंत्र से एक गांठ का पूजन करें। उसके पश्चात माता लक्ष्मी की प्रतिमा का विधि विधान से पूजन करें। पूजन सामग्री में चन्दन, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल, फल मिठाई रखें। पूजा के पश्चात इस मंत्र से पूजा किए गए डोरे को दाहिने हाथ में बांधें।

    धनंधान्यं धरां हर्म्यं कीर्तिमायुर्यश: श्रियम्।

    तुरगान् दन्तिन: पुत्रान् महालक्ष्मि प्रयच्छ मे।।

    डोरा बांधने के बाद हरी दूर्वा के 16 पल्लव और 16 अक्षत् लेकर महालक्ष्मी व्रत की कथा सुनें। इस प्रकार आश्विन कृष्ण अष्टमी को माता लक्ष्मी की प्रतिमा का विसर्जन करें।

    - ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र

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