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    Lord Shiva: सोमवार के दिन रुद्राष्टकम स्तोत्र का करें पाठ, सुख-शांति की होगी प्राप्ति

    By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik Sharma
    Updated: Sun, 03 Mar 2024 06:00 PM (IST)

    सोमवार के दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा-व्रत करने का विधान है। धार्मिक मत है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में भी वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि सोमवार के दिन सच्चे मन से शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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    Lord Shiva: सोमवार के दिन रुद्राष्टकम स्तोत्र का करें पाठ, सुख-शांति की होगी प्राप्ति

    धर्म डेस्क, नहीं दिल्ली। Rudrashtakam Stotram Lyrics: सनातन धर्म में सोमवार का दिन देवों के महादेव को समर्पित है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा और व्रत करने का विधान है। धार्मिक मत है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में भी वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि सोमवार के दिन पूजा के समय सच्चे मन से शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही सुख-शांति प्राप्त होती है। आइए पढ़ते हैं रुद्राष्टकम स्तोत्र।

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    शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र (Rudrashtakam Stotram Lyrics in Hindi)

    नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।

    विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।।

    निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।

    चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ।।1।।

    निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।

    गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।।

    करालं महाकालकालं कृपालं ।

    गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ।।2।।

    तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।

    मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ।।

    स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।

    लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।3।।

    चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।

    प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।।

    मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।

    प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।।4।।

    प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।

    अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।।

    त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।

    भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ।।5।।

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    कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।

    सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।।

    चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।

    प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।6।।

    न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।

    भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

    न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।

    प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ।।7।।

    न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।

    नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ।।

    जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।

    प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ।।8।।

    रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।

    ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।9।।

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