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    Lord Ram Puja: रोजाना करें इस स्तुति का पाठ, जीवन के दुख-दर्द से मिलेगी निजात

    By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik Sharma
    Updated: Fri, 26 Jan 2024 02:00 PM (IST)

    Shri Ram Stuti Lyrics in Hindi भगवान श्रीराम जी ने ऐसे अनेक काम किए हैं जिनके कार्यों की सराहना आज भी की जाती है। द्वापर युग में रामलला अयोध्या नरेश दशरथ के घर अवतरित हुए थे। मान्यता है कि भगवान श्रीराम जी की पूजा में श्रीराम स्तुति का पाठ न करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है।

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    Lord Ram Puja: रोजाना करें इस स्तुति का पाठ, जीवन के दुख-दर्द से मिलेगी निजात

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shri Ram Stuti Lyrics in Hindi: सनातन धर्म में भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना करने का अधिक महत्व है। भगवान श्रीराम जी को जगत के पालनहार भगवान विष्णु के 10 अवतारों में 7वां अवतार माना जाता है। भगवान श्रीराम जी ने ऐसे अनेक काम किए हैं, जिनके कार्यों की सराहना आज भी की जाती है। द्वापर युग में रामलला अयोध्या नरेश दशरथ के घर अवतरित हुए थे। मान्यता है कि भगवान श्रीराम जी की पूजा में श्रीराम स्तुति का पाठ न करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। इसलिए नियमित रूप से श्रीराम स्तुति का पाठ करना चाहिए। मान्यता है कि रोजाना श्रीराम स्तुति का पाठ करने से साधक के जीवन के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं। साथ ही भगवान श्रीराम जी की कृपा प्राप्त होती है। श्रीराम स्तुति इस प्रकार है-

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    श्रीराम स्तुति लिरिक्स इन हिंदी (Shri Ram Stuti Lyrics in Hindi)

    ॥दोहा॥

    श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन

    हरण भवभय दारुणं ।

    नव कंज लोचन कंज मुख

    कर कंज पद कंजारुणं ॥1॥

    कन्दर्प अगणित अमित छवि

    नव नील नीरद सुन्दरं ।

    पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि

    नोमि जनक सुतावरं ॥2॥

    भजु दीनबन्धु दिनेश दानव

    दैत्य वंश निकन्दनं ।

    रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल

    चन्द दशरथ नन्दनं ॥3॥

    शिर मुकुट कुंडल तिलक

    चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।

    आजानु भुज शर चाप धर

    संग्राम जित खरदूषणं ॥4॥

    इति वदति तुलसीदास शंकर

    शेष मुनि मन रंजनं ।

    मम् हृदय कंज निवास कुरु

    कामादि खलदल गंजनं ॥5॥

    मन जाहि राच्यो मिलहि सो

    वर सहज सुन्दर सांवरो ।

    करुणा निधान सुजान शील

    स्नेह जानत रावरो ॥6॥

    एहि भांति गौरी असीस सुन सिय

    सहित हिय हरषित अली।

    तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि

    मुदित मन मन्दिर चली ॥7॥

    ॥सोरठा॥

    जानी गौरी अनुकूल सिय

    हिय हरषु न जाइ कहि ।

    मंजुल मंगल मूल वाम

    अङ्ग फरकन लगे।

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    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'