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जानें, माघ माह की संकष्टी चतुर्थी की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि

हिंदी पंचांग के अनुसार संकष्टी चतुर्थी 21 जनवरी को प्रातकाल 8 बजकर 51 मिनट से शूरु होकर 22 जनवरी को 9 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी। अत साधक दिन में किसी समय भगवान श्रीगणेश की पूजा वंदना कर सकते हैं।

By Umanath SinghEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 11:35 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 11:35 AM (IST)
जानें, माघ माह की संकष्टी चतुर्थी की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि
जानें, माघ माह की संकष्टी चतुर्थी की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि

Sankashti Chaturthi 2022: हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस प्रकार 21 जनवरी को माघ माह की संकष्टी चतुर्थी है। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा-उपासना की जाती है। ऐसा मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन सच्ची श्रद्धा और भक्ति से गणपति बप्पा की पूजा करने वाले साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही सभी दुःख, संकट और क्लेश दूर हो जाते हैं। आइए, माघ माह की संकष्टी चतुर्थी की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि जानते हैं-

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संकष्टी चतुर्थी पूजा शुभ मुहूर्त और तिथि

हिंदी पंचांग के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी 21 जनवरी को प्रात:काल 8 बजकर 51 मिनट से शूरु होकर 22 जनवरी को 9 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी। अत: साधक दिन में किसी समय भगवान श्रीगणेश की पूजा वंदना कर सकते हैं। हालांकि, शास्त्रानुसार, प्रात:काल के समय में पूजा करना उत्तम होता है।

संकष्टी चतुर्थी महत्व

सनातन धर्म में भगवान गणेश की सबसे पहले पूजा करने का विधान है। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि विघ्नहर्ता के नाम मात्र स्मरण से सभी विघ्न दूर हो जाते हैं। स्वंय भगवान ब्रह्मा जी ने संकष्टी चतुर्थी व्रत की महत्ता को बताया है। ऐसे में इस व्रत का अति विशेष महत्व है।

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म बेला में उठें। इसके बाद नित्य कर्म से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब सर्वप्रथम आमचन कर भगवान गणेश के निम्मित व्रत संकल्प लें और भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। इसके पश्चात, भगवान गणेश जी की षोडशोपचार पूजा फल, फूल, धूप-दीप, दूर्वा, चंदन, तंदुल आदि से करें। भगवान गणेश जी को पीला पुष्प और मोदक अति प्रिय है। अतः उन्हें पीले पुष्प और मोदक अवश्य भेंट करें। अंत में आरती और प्रदक्षिणा कर उनसे सुख, समृद्धि और शांति की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। शाम में आरती-अर्चना के बाद फलाहार करें।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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