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जानें, मां शैलपुत्री की उत्पत्ति कैसे हुई और क्या है इसका धार्मिक महत्व

गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मां शैलपुत्री की विधि पूर्वक पूजा करने से व्रती के सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण हो जाती हैं।

By Umanath SinghEdited By: Published: Mon, 22 Jun 2020 11:03 AM (IST)Updated: Mon, 22 Jun 2020 11:03 AM (IST)
जानें, मां शैलपुत्री की उत्पत्ति कैसे हुई और क्या है इसका धार्मिक महत्व
जानें, मां शैलपुत्री की उत्पत्ति कैसे हुई और क्या है इसका धार्मिक महत्व

दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। आषाढ़ महीने में गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है। इस नवरात्रि में साधक मां के नौ रूपों सहित दस विद्या देवियों की भी पूजा करते हैं। खासकर जादू-टोना और तंत्र विद्या सीखने वाले साधकों के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है। इस नवरात्रि में उनकी सिद्धि सिद्ध होती है। गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मां शैलपुत्री की विधि पूर्वक पूजा करने से व्रती के सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण हो जाती हैं। आइए, मां शैलपुत्री की उत्पत्ति की कथा जानते हैं-

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मां शैलपुत्री की उत्पत्ति

पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में प्रजापति दक्ष ने आदिशक्ति की कठिन तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कालांतर में जब उनका जन्म प्रजापति दक्ष के घर सती रूप में हुआ तो वह सब कुछ भूल गई। जब वह बड़ी हुईं तो एक रात उनके स्वप्न में शिव जी आए और उन्हें स्मरण दिलाया।

इसके बाद मां सती शिव जी की पूजा-उपासना करने लगी। इसी समय प्रजापति दक्ष उनके विवाह हेतु वर ढूंढने लगे, लेकिन मां सती शिव जी को अपना पति मान चुकी थीं। अतः उन्होंने पिता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके पश्चात मां सती की शादी भगवान शिव से हुई। हालांकि, उनके पिता प्रसन्न नहीं थे। इसी बीच एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया, जिसमें मां सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।

जब मां सती को इस बात की जानकारी हुई तो वह शिव जी से यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं। उस समय भगवान शिव ने कहा-हे देवी! इस यज्ञ में समस्त लोकों को आमंत्रित किया गया है, किन्तु केवल आपको आमंत्रित नहीं किया गया है। इसका अर्थ है कि आप उस यज्ञ में शामिल न हों। आपके लिए यह उत्तम होगा कि आप वहां न जाएं, लेकिन मां सती नहीं मानीं तो शिव जी ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी।

जब मां सती यज्ञ में शामिल हुईं तो किसी ने उनका आदर-सत्कार नहीं किया। साथ ही शिव जी के प्रति अपमानजनक बातें भी होने लगीं। तब मां सती को आभास हुआ कि उन्होंने यहां आकर गलती कर दी। इसके बाद उन्होंने यज्ञ वेदी में अपनी आहुति दे दी। कालांतर में मां सती शैलराज हिमालय के घर जन्म लेती हैं। अतः इन्हें मां शैलपुत्री कहा जाता है।


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