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    Chhath Puja 2025: खरना पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप और आरती, पूरी होगी मनचाही मुराद

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 05:34 PM (IST)

    26 अक्टूबर यानी आज खरना है, जो छठ पूजा का दूसरा दिन है और सूर्य देव को समर्पित है। इस दिन व्रती संध्याकाल में स्नान कर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करती हैं, जिसमें चावल और गुड़ की खीर व रोटी का भोग लगाया जाता है। इस अवसर पर सूर्य देव के विभिन्न मंत्रों का जप करने का विधान है।

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    Chhath Puja 2025: खरना पूजा का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, रविवार 26 अक्टूबर को खरना है। यह दिन सूर्य देव को समर्पित होता है। खरना छठ पूजा के दूसरे दिन मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर व्रती संध्याकाल में स्नान-ध्यान कर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा और साधना करती हैं। इस दौरान प्रसाद में उन्हें चावल और गुड़ से निर्मित खीर और रोटी का भोग लगाया जाता है। व्रती आज खरना पूजा के समय इन मंत्रों का जप अवश्य करें।

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    सूर्य मंत्र

    1. रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं

    भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।

    पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः

    माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥

    2. एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

    अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।

    3. ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी,भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।

    गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः,कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥

    4. आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।

    दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ॥

    5. ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।

    हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।

    6. ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं

    भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥

    7. ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्

    उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

    8. करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं श्रावण वाणंजं वा मानसंवापराधं ।

    विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

    9. शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

    विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।

    लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्

    वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

    10.जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।

    तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।।

    ॥ आरती श्री सूर्य जी ॥

    जय कश्यप-नन्दन,ॐ जय अदिति नन्दन।

    त्रिभुवन - तिमिर - निकन्दन,भक्त-हृदय-चन्दन॥

    जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

    सप्त-अश्वरथ राजित,एक चक्रधारी।

    दुःखहारी, सुखकारी,मानस-मल-हारी॥

    जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

    सुर - मुनि - भूसुर - वन्दित,विमल विभवशाली।

    अघ-दल-दलन दिवाकर,दिव्य किरण माली॥

    जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

    सकल - सुकर्म - प्रसविता,सविता शुभकारी।

    विश्व-विलोचन मोचन,भव-बन्धन भारी॥

    जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

    कमल-समूह विकासक,नाशक त्रय तापा।

    सेवत साहज हरतअति मनसिज-संतापा॥

    जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

    नेत्र-व्याधि हर सुरवर,भू-पीड़ा-हारी।

    वृष्टि विमोचन संतत,परहित व्रतधारी॥

    जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

    सूर्यदेव करुणाकर,अब करुणा कीजै।

    हर अज्ञान-मोह सब,तत्त्वज्ञान दीजै॥

    जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

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