Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Jyeshtha Amavasya 2024: ज्येष्ठ अमावस्या पर पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, पूरी होगी मनचाही मुराद

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Wed, 05 Jun 2024 10:00 PM (IST)

    अमावस्या तिथि पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। गरुड़ पुराण में निहित है कि अमावस्या तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। साथ ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

    Hero Image
    Jyeshtha Amavasya 2024: ज्येष्ठ अमावस्या पर पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Jyeshtha Amavasya 2024: ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 06 जून को ज्येष्ठ अमावस्या है। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि पर पूजा, जप-तप और दान-पुण्य किया जाता है। ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती और वट सावित्री व्रत का त्योहार मनाया जाता है। शास्त्रों में निहित है कि ज्येष्ठ अमावस्या पर छाया पुत्र शनि देव का अवतरण हुआ है। इसी दिन महिलाएं अखंड सुहाग के लिए वट सावित्री व्रत रखते हैं। कुल मिलाकर कहें तो ज्येष्ठ अमावस्या बेहद शुभ और मंगलकारी दिन है। धार्मिक मत है कि शनिदेव की पूजा करने से साधक के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। अगर आप भी मनचाहा वर पाना चाहते हैं, तो शनि जयंती पर पूजा के समय दशरथकृत शनि स्तोत्र (Dashrath Krit Shani Stotra) का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र के पाठ से मनचाही मुराद पूरी होती है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यह भी पढ़ें: कब और कैसे हुई धन की देवी की उत्पत्ति? जानें इससे जुड़ी कथा एवं महत्व


    दशरथकृत शनि स्तोत्र:

    नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।

    नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥

    नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

    नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥

    नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।

    नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥

    नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।

    नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥

    नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।

    सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥

    अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।

    नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥

    तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।

    नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥

    ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।

    तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।

    त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥

    प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।

    एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:॥

    दशरथ उवाच:

    प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।

    अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥

    यह भी पढ़ें: आखिर किस वजह से कौंच गंधर्व को द्वापर युग में बनना पड़ा भगवान गणेश की सवारी?

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।