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    Janmashtami 2024: भगवान कृष्ण की पूजा करते समय करें इन मंत्रों का जप, खुशियों से भर जाएगी झोली

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 25 Aug 2024 07:56 PM (IST)

    ज्योतिषियों की मानें तो भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर (Janmashtami 2024) कई मंगलकारी शुभ योग बन रहे हैं। इनमें कई द्वापरकालीन शुभ योग बन रहे हैं। इन योग में जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में सुख समृद्धि एवं खुशहाली आती है।

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    Janmashtami 2024: भगवान श्रीकृष्ण को कैसे प्रसन्न करें ?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी पर्व का विशेष महत्व है। इस शुभ अवसर पर मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता है। इसके साथ ही मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। साधक अपने घरों पर जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के जन्म समय तक यानी मध्य रात्रि तक उपवास रखते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण के बाद पूजा-आरती कर फलाहार करते हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भगवान श्रीकृष्ण की महिमा अपरंपार है। अपने भक्तों पर उनकी असीम कृपा बरसती है। उनकी कृपा से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साधक मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं। अगर आप भी भगवान कृष्ण की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो जन्माष्टमी पर पूजा के समय इन मंत्रों का जप अवश्य करें।

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    भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र

    1. ॐ कृष्णाय नमः

    2. हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।

    हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।

    3. ॐ श्री कृष्णः शरणं ममः

    4. ॐ देव्किनन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात

    5. ॐ नमो भगवते तस्मै कृष्णाया कुण्ठमेधसे।

    सर्वव्याधि विनाशाय प्रभो माममृतं कृधि।।

    6. ॐ नमो भगवते श्री गोविन्दाय

    परेशानियी दूर करने वाला मंत्र

    हे कृष्ण द्वारकावासिन् क्वासि यादवनन्दन।

    आपद्भिः परिभूतां मां त्रायस्वाशु जनार्दन।।

    7. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्

    विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।।

    लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्

    वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥

    8.ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा ।

    9. ॐ क्लीं कृष्णाय नमः

    10. अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।

    हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥

    वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।

    चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥

    वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।

    नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥

    गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।

    रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥

    करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।

    वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥

    गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।

    सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥

    गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।

    दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥

    गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।

    दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥

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    डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'