Jagannath Rath Yatra 2019: पुरी मंदिर में क्यों होती है भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की अधूरी मूर्ति की पूजा
Jagannath Rath Yatra 2019 पुरी की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा के अवसर पर हम आपको जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ बलराम और सुभद्री की अधूरी मूर्तियों से जुड़ी कथा...
पुरी की विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा के अवसर पर हम आपको जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्री की अधूरी मूर्तियों से जुड़ी कथा के बारे में बताते हैं। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन की अधूरी मूर्तियों की ही पूजा की जाती है।
भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्ति से जुड़ी कथा
ब्रह्मपुराण के अनुसार, मालवा के राजा इंद्रद्युम्न को स्वपन में भगवान जगन्नाथ के दर्शन हुए थे। भगवान जगन्नाथ ने कहा कि नीलांचल पर्वत की एक गुफा में उनकी एक मूर्ति है, जिसे नीलमाधव कहा जात है। तुम मंदिर बनवाकर, उसमें वह मूर्ति स्थापित करा दो। अगले दिन सुबह राजा इंद्रद्युम्न ने अपने मंत्री को उस गुफा और नीलमाधव की मूर्ति के बारे में पता लगाने का आदेश दिया।
सबर कबीले के लोगों से राजा इंद्रद्युम्न के प्रतिनिधि ने छल से नीलमाधव की मूर्ति ले ली और राजा को सौंप दी। इससे कबीले के भगवान नीलमाधव के भक्त दुखी हो गए। भक्तों के दुख को देखकर भगवान दोबारा उस गुफा में विराजमान हो गए। भगवान ने इंद्रद्युम्न से कहा कि वह विशाल मंदिर बनवा दे, तो वे उसमें विराजमान हो जाएंगे। इंद्रद्युम्न ने मंदिर बनवा दिया, तब भगवान ने कहा कि समुद्र से लकड़ी लाकर उससे मेरी मूर्ति का निर्माण कराओ।
इस बीच देवताओं के शिल्पी भगवान विश्वकर्मा एक वृद्ध के रूप में उस मूर्ति के निर्माण के लिए राजा इंद्रद्युम्न के पास आए। उन्होंने 21 दिनों में मूर्ति बनाने की अपनी इच्छा व्यक्त की और एक शर्त भी रख दी। शर्त यह थी कि मूर्ति निर्माण वह बंद कमरे में करेंगे और अकेले करें, जब तक निर्माण कार्य पूरा नहीं होगा। तब तक कोई उसे नहीं देख सकता। राजा ने शर्त मान ली।
मूर्ति निर्माण का कार्य प्रारंभ हो गया, कुछ दिन बीतने के बाद इंद्रद्युम्न की रानी उस मूर्ति को देखने के लिए व्यग्र हो गईं। राजा के आदेश पर उस कमरे का द्वार खोल दिया गया। जैसे ही कमरा के द्वार खुला, वहां से विश्वकर्मा गायब हो गए और वहां पर भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की अधूरी मूर्तियां पड़ी थीं। राजा ने इन अधूरी मूर्तियों को ही मंदिर के अंदर स्थापित करा दिया, जिसके बाद से भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ उसी स्वरूप में विराजमान हैं।