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    Gupt Navratri June 2025: हिमाचल के ज्वाला देवी मंदिर में है सच्चा दरबार, अकबर से लेकर अंग्रेज तक मान गए थे हार

    इस मंदिर का निर्माण कार्य राजा भूमि चंद ने शुरू करवाया था। इसके बाद पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने 1835 में इसे पूरा कराया। इसी वजह से इस मंदिर में हिंदुओं और सिखों की आस्था है। 

    By Shashank Shekhar Bajpai Edited By: Shashank Shekhar Bajpai Updated: Thu, 26 Jun 2025 02:34 PM (IST)
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    यहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं, बल्कि पृथ्वी से निकल रही नौ प्राकृतिक ज्वालाओं की पूजा की जाती है।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वालाजी का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। गुप्त नवरात्र के मौके पर हम आपको इस मंदिर का इतिहास बता रहे हैं, जिसे ज्वाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर अपने आप में अनोखा है। यहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं, बल्कि पृथ्वी से निकल रही नौ प्राकृतिक ज्वालाओं की पूजा की जाती है।

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    इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इन ज्वालाओं में सबसे प्रमुख ज्वाला महाकाली के रूप में जानी जाती है। यह मंदिर जितना दिव्य और अद्भुत है, उतना ही चमत्कारिक भी है। मान्यता है कि यहां माता सती की जिह्वा गिरी थी।

    कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने इन ज्वालाओं को बुझाने का प्रयास किया था। इस मंदिर के बारे में सुनकर हैरान बादशाह अकबर सेना लेकर खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। ज्वालाओं को देखकर उसने उन्हें बुझाने के लिए नहर बनवाई। मगर, लाख कोशिशों के बाद भी वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका।

    सोने का छत्र भी मां ने नहीं किया स्वीकार

    देवी मां की महिमा के आगे घुटने टेकते हुए अकबर ने सवा मन यानी पचास किलो सोने का छत्र मां के दरबार में चढ़ाया। मगर, माता ने उसे स्वीकार नहीं किया और वह छत्र गिर कर किसी अन्य धातु में बदल गया। आज भी वह छत्र ज्वाला देवी के मंदिर में रखा है।

    अंग्रेज भी नहीं पता लगा पाए रहस्य

    इसके बाद अंग्रेजों ने भी इन ज्वालाओं के लगातार जलने का रहस्य पता करना चाहा, लेकिन असफल रहे। अंग्रेज जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहते थे। लिहाजा, वो इसके स्रोत का पता पता करने में जुट गए। लाख कोशिशों के बाद भी अंग्रेज भूगर्भ से निकलती इस ज्वाला का पता नहीं कर पाए। उन्होंने भी माना कि यह ज्योत प्राकृति कारणों से नहीं चमत्कारिक कारणों से जल रही है।

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    कैसे पहुंचे

    यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर होने के कारण आसानी से इस मंदिर पहुंचा जा सकता है। आप ज्वालाजी रोड रानीताल या पठानकोट से ज्वालामुखी रोड तक ट्रेन से आ सकते हैं। फिर टैक्सी या बस से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।