इस गणपति स्तोत्र का जप करने से कुछ दिनों में ही इच्छित फल की प्राप्ति होती है
पार्वती नन्दन श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु , कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये उन भक्तनिवास का नित्यप्रति स्मरण करें।
By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 28 Feb 2017 12:04 PM (IST)Updated: Wed, 01 Mar 2017 09:22 AM (IST)
धार्मिक मान्यतानुसार हिन्दू धर्म में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी देवताओं में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। ये शिव और पार्वती के दूसरे पुत्र हैं।
भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिकरूप तथा प्रणवस्वरूप हैं।
श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं जो आपके जीवन के दुखों को हर लेते हैं। वे अपने उपासकों पर जल्दी ही प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। गणेशोत्सव के दस दिनों में गणेशजी की आराधना बहुत मंगलकारी मानी जाती है। उनके भक्त विभिन्न प्रकार से उनकी आराधना करते हैं। अनेक श्लोक, स्तोत्र, जाप द्वारा गणेशजी को मनाया जाता है।
मनचाहा धन देता है संकटनाशन गणेश स्तोत्र
मनचाहे धन की प्राप्ति हेतु श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे 'संकटनाशन गणेश स्तोत्र' के 11 पाठ करें। प्रस्तुत है श्री गणेश का लोकप्रिय संकटनाशन स्तोत्र :संकटनाशनगणेशस्तोत्रम्
ॐ गं गणपत्ये नमः
श्री संकटनाशनगणेशस्तोत्रम्प्र णम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् । भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये॥१॥ नारद जी बोले – पार्वती नन्दन श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु , कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये उन भक्तनिवास का नित्यप्रति स्मरण करें ।।१।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम् । तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥२॥ पहला वक्रतुण्ड (टेढे मुखवाले), दुसरा एकदन्त (एक दाँतवाले), तीसरा कृष्ण पिंगाक्ष (काली और भूरी आँख वाले), चौथा गजवक्र (हाथी के से मुख वाले) ।।२।।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च । सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥ पाँचवा लम्बोदरं (बड़े पेट वाला), छठा विकट (विकराल), साँतवा विघ्नराजेन्द्र (विध्नों का शासन करने वाला राजाधिराज) तथा आठवाँ धूम्रवर्ण (धूसर वर्ण वाले) ।।३।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् । एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥ नवाँ भालचन्द्र (जिसके ललाट पर चन्द्र सुशोभित है), दसवाँ विनायक, ग्यारवाँ गणपति और बारहवाँ गजानन ।।४।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः । न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरः प्रभुः॥५॥ इन बारह नामों का जो मनुष्य तीनों सन्धायों (प्रातः, मध्यान्ह और सांयकाल) में पाठ करता है, हे प्रभु ! उसे किसी प्रकार के विध्न का भय नहीं रहता, इस प्रकार का स्मरण सब सिद्धियाँ देनेवाला है ।।५।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् । पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥ इससे विद्याभिलाषी विद्या, धनाभिलाषी धन, पुत्रेच्छु पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्षगति प्राप्त कर लेता है ।।६।।
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् । संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥७॥ इस गणपति स्तोत्र का जप करे तो छहः मास में इच्छित फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है – इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ।।७।।
अष्टेभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् । तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥८॥ जो मनुष्य इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त हो जाती है ।।
इससे विद्याभिलाषी विद्या, धनाभिलाषी धन, पुत्रेच्छु पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्षगति प्राप्त कर लेता है ।।६।।
इस गणपति स्तोत्र का जप करे तो छहः मास में इच्छित फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ।।७।।
जो मनुष्य इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त हो जाती है ।।८।।
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