Sankashti Chaturthi पर जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ, बप्पा की कृपा से बनेगा हर काम
हर माह की चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेश की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम मानी जाती है। ज्येष्ठ माह में मनाई जाने वाली एकदंत संकष्टी चतुर्थी (Ekdant Sankashti Chaturthi) के दिन आप गणेश जी की विशेष रूप से पूजा-अर्चना कर शुभ फलों की प्राप्ति कर सकते हैं। कई साधक इस तिथि पर व्रत भी करते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस प्रकार ज्येष्ठ माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकदंत संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन पर आप संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं, जिससे बप्पा की कृपा आपके ऊपर बनी रहेगी।
एकदंत संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त (Sankashti Chaturthi Puja Time)
ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 16 मई को प्रातः 4 बदकर 2 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 16 मई को 5 बजकर 13 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक एकदंत संकष्टी चतुर्थी शुक्रवार, 16 मई को मनाई जाएगी। इस दिन पर चंद्र दर्शन करने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। ऐसे में चन्द्रोदय का समय कुछ इस प्रकार रहेगा -
चन्द्रोदय का समय - रात 10 बजकर 39 मिनट पर
(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
संकटनाशन गणेश स्तोत्र (Sankatnashan Ganesh Stotra)
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ।।
प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ।।
लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ।।
नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ।।
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आप एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा-अर्चना के दौरान संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। इससे बप्पा प्रसन्न होते हैं और साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ।।
जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ।।
इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ।।
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