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    Sankashti Chaturthi 2024: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर इस स्तोत्र का करें पाठ, कर्ज में मिलेगी मुक्ति

    By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik Sharma
    Updated: Sat, 24 Feb 2024 02:00 PM (IST)

    द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश जी की पूजा और व्रत करने का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को बुद्धि विद्या और ज्ञान मिलता है। इस दिन आप पूजा के दौरान गणेश जी को समर्पित ऋण मुक्ति गणेश स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। मान्यता के अनुसार इस स्तोत्र का पाठ करने से कर्ज की समस्या से मुक्ति मिलती सकती है

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    Sankashti Chaturthi 2024: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर इस स्तोत्र का करें पाठ, कर्ज में मिलेगी मुक्ति

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Rin Harta Ganesh Stotram: हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस बार फाल्गुन माह में संकष्टी चतुर्थी 28 फरवरी को है। इस चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस विशेष तिथि पर भगवान गणेश जी की पूजा और व्रत करने का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को बुद्धि, विद्या और ज्ञान मिलता है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी दुख और संताप दूर होते हैं। इस दिन आप पूजा के दौरान गणेश जी को समर्पित ऋण मुक्ति गणेश स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। मान्यता के अनुसार, इस स्तोत्र का पाठ करने से कर्ज की समस्या से मुक्ति मिलती सकती है और भगवान गणेश जी की कृपा सदैव बनी रहेगी। आइए पढ़ते हैं ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र।

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    द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 2024 शुभ मुहूर्त

    फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 28 फरवरी को रात 01 बजकर 53 मिनट पर होगी और इसके अगले दिन यानी 29 फरवरी को सुबह 04 बजकर 18 मिनट पर तिथि का समापन होगा। ऐसे में द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 28 फरवरी, बुधवार के दिन किया जाएगा।

    ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र

    ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।

    ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्॥

    सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:।

    सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

    इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,

    एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:।

    दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्॥

    ऋण मोचन मंगल स्तोत्र

    मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।

    स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः॥

    लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।

    धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥

    अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।

    व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥

    एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।

    ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥

    धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

    कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥

    स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।

    न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥

    अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।

    त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥

    ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।

    भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥

    अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।

    तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥

    विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।

    तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥

    पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।

    ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥

    एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।

    महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥

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